उत्तर प्रदेश में अगले महीने विधानसभा के चुनाव होने है, ऐसे में प्रदेश की राजनीति काफी गरमाई हुई है। चुनाव में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और प्रमुख विपक्षी दल सपा के बीच होने की संभावना है लेकिन बसपा और कांग्रेस इसे चतुष्कोणीय मुकाबला बनाने के प्रयासों में लगी हैं।
मायावती अनेक अवसरों पर आगाह कर चुकी हैं कि
भाजपा और सपा ने जोरदार तरीके से अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत कर यह प्रभाव पैदा करने का प्रयास किया है कि दोनों पार्टियों के बीच ही मुख्य चुनावी मुकाबला होगा। किंतु बसपा प्रमुख मायावती अनेक अवसरों पर आगाह कर चुकी हैं कि उनकी पार्टी को मुकाबले से बाहर मानकर चलना भारी भूल होगी। प्रियंका गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ‘आधी आबादी’ को राजनीति और समाज की मुख्यधारा में लाने की नई जुगत के साथ प्रदेश का राजनीतिक समीकरण बदलने की कोशिश कर रही है।
पार्टी इस बार 325 से ज्यादा सीटें जीतेगी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा अन्य भाजपा नेता जिस तरह से सपा प्रमुख अखिलेश यादव को निशाना बना रहे हैं, उससे राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि सत्तारूढ़ दल सपा को ही अपने लिए मुख्य चुनौती मान रहा है। उत्तर प्रदेश भाजपा प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने कहा वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए 2017 से भी बड़ी कामयाबी लेकर आएगा। पार्टी इस बार 325 से ज्यादा सीटें जीतेगी।
कोविड-19 के खराब प्रबंधन जैसे मुद्दों को लेकर भाजपा के विरूद्ध बड़ी नाराजगी है
उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 300 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की। वह भी तब जब सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोक दल ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। उधर, सपा के विधान परिषद सदस्य आशुतोष सिन्हा ने दावा किया कि लोगों में बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, खराब कानून-व्यवस्था और कोविड-19 के खराब प्रबंधन जैसे मुद्दों को लेकर भाजपा के विरूद्ध बड़ी नाराजगी है। उन्होंने कहा किभाजपा इन मुद्दों की तरफ से आंख बंद किए हैं और लोगों का ध्यान बेकार के मुद्दों की तरफ ले जाना चाहती है, किंतु जनता अब समझदार हो चुकी है और वह इस बार भाजपा के तमाम मंसूबों को ध्वस्त कर देगी।
भाजपा के साथी को तोड़ने में कामयाब रहे
राजनीति के लिहाज से सबसे संवेदनशील माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हानि-लाभ को देखते हुए भाजपा और सपा दोनों ने ही अपने साथी तय कर लिए हैं। समय के साथ कुछ और दल भी उनके खेमे में आ सकते हैं। भाजपा ने पिछड़े वर्ग को साधने के लिए अपना दल और निषाद पार्टी का साथ और भी मजबूत किया है।
वहीं, सपा इस मामले में ज्यादा आक्रामक मुद्रा में है और वह पूर्वांचल में दबदबा रखने वाले राजभर समाज के नेता और पूर्व में भाजपा के साथी रहे ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को अपने पाले में लाने में कामयाब रही है। इसके अलावा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने वक्त की नजाकत को समझते हुए कभी अपने प्रतिद्वंदी रहे अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव से भी हाथ मिला लिया है।
शिद्दत से नहीं उतरी है बसपा
कांग्रेस महासचिव और पार्टी की उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी रणनीति महिलाओं पर केंद्रित कर दी है। यह देखना रोचक होगा कि उनका यह महिला कार्ड प्रमुख विपक्षियों की जातीय और संप्रदाय आधारित गणित को बिगाड़ पाता है या नहीं।
वर्ष 2014 से पराभव का दौर देख रही बसपा वैसे तो अभी चुनावी मैदान में बाकी दलों की तरह शिद्दत से नहीं उतरी है लेकिन राज्य की करीब 20 प्रतिशत आबादी वाले दलित मतदाताओं में उसके प्रभाव से अब भी इनकार नहीं किया जा सकता। उत्तर प्रदेश की 403 में से 86 सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित हैं।
असदुद्दीन ओवैसी अपनी पैठ बनाने की भरसक कोशिश कर रही है
वर्ष 2024 के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माने जा रहे उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन भी उत्तर प्रदेश में अपनी पैठ बनाने की भरसक कोशिश कर रही हैं।
पिछले साल पश्चिम बंगाल में जबरदस्त जीत से उत्साहित ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस भी उत्तर प्रदेश में पैर जमाने की कोशिश कर रही है। हालांकि वह गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव लड़ रही है लेकिन उसने उत्तर प्रदेश में सपा का सहयोग करने की इच्छा दिखायी है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने का प्रयास कर रही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और बिहार सरकार में मंत्री मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी भी राज्य की प्रमुख पार्टियों में अपने-अपने राजनीतिक खेवनहार तलाश रही हैं।