उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को अभूतपूर्व पलायन का सामना करना पड़ रहा है। पिछले साल 7 विधायकों के विद्रोह के बाद, बसपा से नेताओं के निकलने का सिलसिला और भी बढ़ गया है। पार्टी के कई नेता अभी भी समाजवादी पार्टी (सपा) के संपर्क में हैं, जो कि बसपा के लिए चिंताजनक है। बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आर. एस. कुशवाहा ने सोमवार को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से लखनऊ में पार्टी मुख्यालय में मुलाकात की।
हालांकि इस मुलाकात को शिष्टाचार भेंट करार दिया गया था, लेकिन कहा जा रहा है कि कुशवाहा अब किसी भी दिन सपा में शामिल हो सकते हैं। बसपा के एक नेता ने कहा, किसी भी हाल में अगर वह सपा में शामिल नहीं भी होते हैं तो भी इस बैठक के बाद उन्हें बसपा से निकाल दिया जाएगा। इससे पहले बसपा से निष्कासित दो विधायक लालजी वर्मा और राम अचल राजभर ने भी अखिलेश यादव से कथित शिष्टाचार भेंट के तौर पर मुलाकात की थी।
बसपा के एक अन्य वरिष्ठ विधायक और उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष सुखदेव राजभर ने सक्रिय राजनीति से संन्यास की घोषणा की थी, जबकि उनके बेटे कमलकांत राजभर सपा में शामिल हो गए हैं। इस बीच सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा है कि समाजवादी पार्टी सत्तारूढ़ भाजपा के एकमात्र विकल्प के रूप में उभरी है। बसपा के भीतर असंतोष तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि अधिक से अधिक नेता पार्टी छोड़ रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि पार्टी छोड़ने वाले ज्यादातर नेता दलित और ओबीसी समुदायों से हैं। सपा में शामिल होने की तैयारी कर रहे बसपा के एक विधायक ने कहा, बसपा पर अब ब्राह्मणों का शासन है। मैंने लखनऊ में पार्टी अध्यक्ष से मिलने की कई कोशिशें कीं, लेकिन मौका नहीं दिया गया। एक विधायक अपनी पार्टी के अध्यक्ष से नहीं मिल सकता, तो पार्टी से क्या उम्मीद की जा सकती है?