अयोध्या में विवादित भूमि पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही अपना फैसला चुकी है। और अब इस मामले में ढांचे को गिराए जाने के मामले में आरोपितों को लेकर फैसला आना बाकी है। ढांचा विध्वंस के 28 साल पुराने मामले में फैसले की घड़ी आ गई है। सब की निगाह आज लखनऊ की विशेष सीबीआई कोर्ट के इस आने वाले फैसले पर टिकी हुई है। छह दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचा ढहाने के कथित षड्यंत्र, भड़काऊ भाषण और पत्रकारों पर हमले के 49 मुकदमों में सीबीआई की विशेष अदालत बुधवार को अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाएगी। हैरानी की बात ये है की इन बीते 28 वर्षों में 49 अभियुक्तों में से 17 की मौत हो चुकी है। और लगभग पचास गवाह भी दुनिया से विदा हो चुके हैं।
इन मामलों के अलावा पत्रकारों और फोटोग्राफरों ने मारपीट, कैमरा तोड़ने और छीनने आदि के 47 मुकदमे अलग से कायम कराए। ये मामले लखनऊ सीबीआई कोर्ट से जुड़े रहे। सरकार ने बाद में सभी केस सीबीआई को जांच के लिए दे दिए। इसके बाद सीबीआई ने रायबरेली में चल रहे केस नंबर 198 की दोबारा जाँच की अनुमति अदालत से ली। उत्तर प्रदेश सरकार ने 9 सितम्बर 1993 को नियमानुसार हाईकोर्ट के परामर्श से 48 मुकदमों की सुनवाई के लिए लखनऊ में विशेष अदालत के गठन की अधिसूचना जारी की। लेकिन इस अधिसूचना में केस नंबर 198 शामिल नहीं था, जिसका ट्रायल रायबरेली की स्पेशल कोर्ट में चल रहा था।
बता दें की अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस केस में कई बड़े नाम जुड़े हैं जिसमे शामिल है पूर्व उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री रहे लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व राज्यपाल और यूपी के सीएम रहे कल्याण सिंह, भाजपा नेता विनय कटियार, पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश की सीएम रहीं उमा भारती। आपको बता दें की अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को राम जन्मभूमि प्रांगण में इस विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था। इसमें बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं को आरोपी बनाया गया था, सभी ने अदालती कार्रवाई का सामना किया।