सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार के धर्मांतरण कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को इलाहाबाद हाई कोर्ट से खुद स्थानांतरित करने से सोमवार को इनकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने कहा कि वह चाहेगी कि हाई कोर्ट इसपर आदेश सुनाए।
पीठ की टिप्पणी का संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने स्थानांतरण याचिका को वापस लेने का फैसला किया। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी एस नरसिम्हा ने कहा कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के सामने मामलों की सुनवाई के दोहराव से बचने के लिए स्थानांतरण याचिका मंजूर की जा सकती है।
पीठ ने कहा, ‘‘हमने नोटिस जारी किया है, इसका ये मतलब नहीं है कि हाई कोर्ट मामले पर फैसला नहीं कर सकता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें मामले की सुनवाई से हाई कोर्ट को क्यों रोकना चाहिए। हाई कोर्ट को फैसला सुनाने दीजिए।’’ सुप्रीम कोर्ट छह जनवरी को अंतरधार्मिक विवादों के लिए धर्मांतरण का नियमन करने वाले उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के नए विवादित कानूनों की समीक्षा करने पर सहमत हो गया था।
हालांकि, पीठ ने दो-अलग अलग याचिकाओं पर कानून के विवादास्पद प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार किया था और दोनों राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों को नोटिस जारी किया था तथा चार हफ्ते में जवाब देने को कहा था।
अधिवक्ता विशाल ठाकरे और अन्य तथा एनजीओ ‘सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस’ द्वारा दाखिल याचिकाओं में ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपविर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020’ और उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता कानून, 2018 को चुनौती दी गई है।