राघव लखनपाल शर्मा 2014 में सहारनपुर लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद चुन लिए गए थे। उसके बाद विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के राजीव गुंबर ने एक लाख आठ हजार 306 वोट लेकर सपा के संजय गर्ग को 26667 वोटों से पराजित कर दिया था। संजय गर्ग को 81 हजार के करीब वोट मिले थे। उनकी हार की वजह इमरान मसूद के कांग्रेस उम्मीदवार मुकेश चौधरी को 28 हजार वोटों का मिलना था। जाहिर है कि सहारनपुर में भाजपा तभी जीत सकती है जब विपक्ष बिखरा हो। संजय गर्ग चुनावी रणनीति के माहिर हैं।
उन्होंने 1993, 2007, 2012 और 2014 (उपचुनाव) समेत कुल 7 विधानसभा चुनाव लड़े और तीन 1996, 2002 और 2017 जीते जबकि चार हारे। अबकी बार उनका आठवां चुनाव होगा। भाजपा इस बार नए उम्मीदवार को इस सीट पर उतार सकती है। भाजपा के 1995 में पार्षद एवं सीनियर वाइस चेयरमैन और 2000 में चार माह के लिए कार्यवाहक चेयरमैन रहे 55 वर्षीय अमित गगनेजा प्रमुख दावेदारों में हैं।
वह 2016 से 2018 तक भाजपा के महानगराध्यक्ष रहे और 2 बार भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य रहे। व्यापारी नेता 61 वर्षीय दिनेश सेठी का नाम भी दावेदारों में शामिल है। पूर्व सांसद राघव लखनपाल शर्मा भी चुनाव लड़ सकते हैं। संजय गर्ग से अलग होकर भाजपा में कुछ साल पहले शामिल हुए बैंक एम्पलाइज यूनियन के नेता सुनील गुप्ता, युवा नेता सुमित सिंघल और भाजपा महानगराध्यक्ष राकेश जैन भी मजबूत दावेदारो में हैं। ज्यादा उम्मीद यही है कि भाजपा पंजाबी समाज की दावेदारी की अनदेखी नहीं करेगी।
पूर्व विधायक राजीव गुंबर भी फिर से टिकट पाने को भाग-दौड़ कर रहे हैं। भाजपा आमतौर से हारे हुए उम्मीदवारों पर कम ही विचार करती है। नया और ऊर्जावान उम्मीदवार ही संजय गर्ग की कड़ी परीक्षा ले सकता है। भाजपा की सबसे बड़ी दिक्कत यह भी है कि हरियाणा और उत्तराखंड की सीमा से सटे सहारनपुर महानगर और जनपद में भाजपा के पास संजय गर्ग के कद का कोई वैश्य नेता नहीं है। यह समाज अपनी दिक्कतों और परेशानियों के लिए संजय गर्ग का ही दरवाजा खटखटाता है। इस कारण संजय गर्ग के सामने बनियों की कोई बड़ी शख्सियत भी नहीं उभर सकी है।
भाजपा के लिए यह बड़ी समस्या है। इसलिए भाजपा की सियासत में सहारनपुर महानगर में पंजाबी समाज का ही दबदबा और एकाधिकार बना हुआ है। संजय गर्ग को एक लाभ यह मिलता है कि 25 फीसद से ज्यादा मुस्लिम मतदाता उन्हें एकमुश्त मतदान करते हैं। सहारनपुर महानगर में बसपा का कोई जनाधार नहीं है। इमरान मसूद का मुसलमानों में जबरदस्त असर है। उनका रूख यहां के नतीजे को प्रभावित करता है। वह खुद भी सहारनपुर नगर पालिका के चेयरमैन रह चुके हैं। इस बार इमरान मसूद का क्या निर्णय होगा यह तय नहीं है। उनके सपा में जाने की संभावनाएं दिख रही हैं। फिलहाल वह कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव हैं।