ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है, इससे पहले गुरुवार को हिंदू पक्ष ने 274 पन्नों का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया था। जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 3 जजों की पीठ ने पहले सभी पक्षकारों के वकीलों के बारे में जाना। इसके बाद ऑर्डर 7 के नियम 11 के बारे में जस्टिस चंद्रचूड़ ने बताते हुए कहा कि ऐसे मामलों को जिला न्यायाधीश को ही सुनना चाहिए। जिला जज अनुभवी अधिकारी होते हैं, उनको सुनना सभी पक्षकारों के हित में होगा।
हिंदू पक्ष ने SC में दाखिल किया लिखित जवाब
बता दें कि हिंदू पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया है, जिसमें दावा किया गया है कि विवादित जगह मस्जिद नहीं, बल्कि भगवान का मंदिर है। भारत में इस्लामिक शासन से हजारों साल पहले से यह संपत्ति भगवान ‘आदि विश्वेश्वर’ की है तथा इसे किसी को नहीं दिया जा सकता है। सदियों से उस स्थल पर हिंदू रीतियों का पालन करते हुए लोग परिक्रमा करते आ रहे हैं।
हिंदू पक्ष के जवाब में कहा गया है कि औरंगजेब के शासक में उस मंदिर की संपत्ति पर जबरन कब्जा किया गया था। इस कब्जे से मुसलमानों को संपत्ति पर हक नहीं मिल सकता। औरंगजेब ने कोई वक्फ नहीं स्थापित किया। हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने अंजुमन ए इंतेजामिया मस्जिद वाराणसी की प्रबंधन समिति की याचिका पर सुनवाई से पूर्व यह तथ्य अदालत में पेश किए।
दवाब में किया दावा- ज्ञानवापी मस्जिद नहीं मंदिर है
विष्णु जैन ने एक लिखित जवाब दाखिल कर दावा किया कि मूल मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया गया था और शेष संरचना तथा सामग्री का उपयोग कर एक निर्माण किया गया था और उसे ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ नाम दिया गया। जवाब में दावा किया गया है कि देवता दृश्य और अदृश्य रूप में परिसर के भीतर मौजूद है और यह बहुत पुराना मंदिर है। हिंदू पक्ष का कहना है कि 15 अगस्त 1947 को विचाराधीन उस संपत्ति का स्वरूप हिंदू मंदिर का था क्योंकि हिंदू देवताओं और अन्य सहयोगी देवताओं की छवियां वहां मौजूद थीं तथा उनकी पूजा की जा रही थी।