इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन का काम आंखों में धूल है। कोर्ट ने कहा कि यह मिशन महज पैसे बांटने की मशीन बनकर रह गया है. बजट के पैसों से गंगा की सफाई हो रही है या नहीं, इसकी न तो निगरानी हो रही है और न ही जमीनी स्तर पर कोई काम दिख रहा है।
यह टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और अजीत कुमार की पूर्ण पीठ ने गंगा प्रदूषण मामले में सुनवाई के दौरान उत्पन्न स्थिति के मद्देनजर मिशन के बजट का ब्योरा मांगने के लिए की। कोर्ट ने पूछा कि इस मिशन के तहत गंगा की सफाई के लिए खर्च किए गए करोड़ों रुपये के बजट से काम हुआ है या नहीं, इसका कोई जवाब नहीं मिला।
इससे पहले सुनवाई शुरू होते ही कोर्ट ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जल निगम ग्रामीण एवं शहरी, नगर निगम प्रयागराज समेत कई विभागों के हलफनामों पर बारी-बारी से जानकारी मांगी। संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर कोर्ट ने पूछा कि क्या इतनी बड़ी योजना के लिए कोई पर्यावरण इंजीनियर है।
इस पर बताया गया कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन में कार्यरत सभी अधिकारी पर्यावरण इंजीनियर हैं। उनकी सहमति के बिना कोई भी प्रोजेक्ट पूरा नहीं होता है। इस पर अदालत ने पूछा कि परियोजनाओं की निगरानी कैसे की जाती है लेकिन कोई जवाब नहीं दिया गया। इस पर कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की।