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राजभर का दावा- सपा करले छोटे दलों से गठबंधन तो पूर्वी UP में भाजपा को नहीं मिलेगी एक भी सीट

अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने है, ऐसे में तमाम राजनीतिक पार्टियों ने अपनी रणनीति अभी से बनानी शुरू कर दी है। सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को घेरने के लिए सभी विरोधी दल अपनी कूटनीति पर काम कर रहे है। ऐसे में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने दावा किया है कि अगर समाजवादी पार्टी (सपा) केवल छोटे दलों से समझौता कर ले, तो आगामी विधानसभा चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलेगी।
सुभासपा अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री राजभर ने कहा, ''भारतीय जनता पार्टी की सरकार से पूरे राज्य की जनता में नाराजगी है। यदि समाजवादी पार्टी आगे बढ़कर क्षेत्रीय पार्टियों और छोटी पार्टियों से समझौता कर ले तो चुनाव परिणाम बदल जाएगा। सपा केवल हमसे (सुभासपा) समझौता कर ले तो मऊ, बलिया, गाजीपुर, आजमगढ़, जौनपुर, आंबेडकर नगर आदि जिलों में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलेगी। सिर्फ बनारस में दो सीट पर लड़ाई रहेगी।''
उल्लेखनीय है कि वाराणसी जिले के मूल निवासी राजभर गाजीपुर जिले की जहूराबाद विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं और उन्होंने अपनी पार्टी का मुख्यालय बलिया जिले के रसड़ा में बनाया है। वह जिस राजभर बिरादरी से आते हैं, उसकी पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में अच्छी संख्या है। सुभासपा का दावा है कि बहराइच से बलिया तक पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस समुदाय की आबादी 12 फीसद है। 403 सदस्यों वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा में पूर्वी उत्तर प्रदेश से लगभग 150 सीट हैं।
अखिलेश यादव के इस बयान पर कि छोटे दलों के लिए उनके दरवाजे खुले रहेंगे, सुभासपा प्रमुख ने कहा, '' उनका यह बयान करीब छह माह से चल रहा है। क्या किसी छोटे दल के नेता से उन्होंने बातचीत की। अभी तो उनकी तरफ से कोई पहल ही नहीं हुई है। वह (अखिलेश यादव) जिस तरह कह रहे हैं, अगर छोटे दलों को बुलाकर बात कर लें तो देखिए परिणाम क्या होता है।''
राज्य में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस में कौन सी पार्टी भाजपा को हरा सकती है, इस प्रश्न पर उन्होंने कहा ''प्रदेश में लोगों को लग रहा है कि भाजपा से सिर्फ सपा ही लड़ सकती है। इधर बसपा ने भी कोशिश शुरू की है, लेकिन बसपा का वह ‘क्रेज’ नहीं है, जो समाजवादी पार्टी का है।''
राजभर ने कहा कि छोटे दलों को मिलाकर बनाया गया उनका 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' बहुत मजबूत है तथा अभी कई और दल इसमें शामिल होंगे। उन्होंने पहले कहा था कि अगर भाजपा किसी पिछड़े वर्ग के नेता को अगले चुनाव में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाती है तो उनकी पार्टी एकबार फिर से भाजपा से गठजोड़ कर सकती है।
इससे पहले, मंगलवार को राजभर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से मिले थे, जिससे उनके एक बार फिर से भगवा पार्टी से हाथ मिलाने को लेकर अटकलें लगाई जाने लगी थीं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के घर जाने के बारे में पूछे जाने पर राजभर ने कहा, ''भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह कई बार मेरे घर आए, वही मुझे स्‍वतंत्र देव सिंह के घर लेकर गए, उनकी पत्नी स्‍वाति सिंह उप्र सरकार में मंत्री हैं, वह बलिया के हैं और मैं भी बलिया में रहता हूं तो मेरा उनसे पुराना संबंध है।'' भाजपा के लोगों से इतने निकट संबंध होने के बावजूद लड़ाई की स्थिति क्यों आई, इस सवाल पर राजभर ने कहा, ‘‘भाजपा से हमारा झगड़ा वंचित समाज के हक को लेकर है।’’

उन्होंने कहा, '' हम देश में जातिवार जनगणना चाहते हैं, 2001 में राजनाथ सिंह ने एक सामाजिक न्‍याय समिति बनाई थी जिसकी रिपोर्ट रद्दी की टोकरी में पड़ी रही। हम पिछड़ों के आरक्षण में बंटवारे के लिए उस रिपोर्ट को लागू कराना चाहते हैं। 2017 के चुनाव से पहले जब हमारी अमित शाह से बात हुई तो उन्होंने कहा कि अगर आप रिपोर्ट लागू कराना चाहते हैं तो डबल इंजन की सरकार बनवाइए। उन्होंने कहा था कि लोकसभा चुनाव से छह माह पहले इसे लागू कर दिया जाएगा, लेकिन अंतिम समय में अमित शाह ने कहा कि पिछड़ी जाति के आरक्षण में बंटवारे के बाद यादव और कुर्मी जातियां नाराज होंगी, इसलिए रिपोर्ट लागू नहीं की जा सकती।''
गौरतलब है कि राजभर की पार्टी ने 2017 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी गठबंधन से अलग हो गई थी। पिछले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में राजभर की पार्टी को चार सीटों पर जीत मिली थी और राज्य सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया था, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।