उच्चतम न्यायालय ने मथुरा में यमुना नदी में प्रदूषण की स्थिति पर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अपनी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने नदी की सफाई के लिये उठाये जाने वाले कदमों के बारे में भी बोर्ड से जानकारी मांगी है। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति रवीन्द्र भट्ट की पीठ ने केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह रिपोर्ट छह सप्ताह के भीतर पेश करने का निर्देश दिया है। इस रिपोर्ट में सुझाव भी होंगी।
शीर्ष अदालत राष्ट्रीय हरित अधिकरण के चार अप्रैल, 2017 के निर्देश को चुनौती देने वाली उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अधिकरण ने इस आदेश में मथुरा में प्रदूषण के लिये पांच लाख रूपए का जुर्माने के रूप में भुगतान करने का निर्देश दिया था।
अधिकरण ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को कूड़ा डालने वाले स्थल और नदी के किनारे चाहरदीवारी बनाने का निर्देश दिया था ताकि यमुना में कोई कचरा नहीं जा सके। अधिकरण ने यहां हरित पट्टी विकसित करने का भी निर्देश दिया था। पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एक अधिकारी को तैनात करे जो मौके का निरीक्षण करके रिपोर्ट दे कि क्या चाहरदीवारी का निर्माण किया गया है। वह हरित पट्टी के विकास के बारे में भी अपनी रिपोर्ट देंगे और यह भी बतायेंगे कि नदी को साफ करने के लिये और किन सुधारों की आवश्यकता है।’’
अधिकरण ने 2017 में कहा था कि उसे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मथुरा छावनी बोर्ड पर्यावरण का संरक्षण करने और कानून के अनुरूप अपने दायित्वों का निर्वहन करने में बुरी तरह विफल रहे हैं। इसलिए उन्हें राष्ट्रीय हरित अधिकरण कानून की धारा 15 और 17 के तहत पर्यावरण मुआवजे का भुगतान करना होगा।
अधिकरण ने कहा था कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पर्यावरण मुआवजे के रूप में पांच लाख रूपए और छावनी बोर्ड को लगातार वायु, जल और भूजल को प्रदूषित करने के सिलसिले में दस लाख रूपए के भुगतान का आदेश दिया जाता है।शीर्ष अदालत ने बाद में अधिकरण के इस आदेश पर रोक लगा दी थी।
अधिकरण ने मथुरा निवासी तपेश भारद्वाज तथा अन्य की याचिका पर यह फैसला सुनाया था। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि छावनी बोर्ड अपने इलाके से ठोस कचरा एकत्र करने के बाद उसे यमुना नदी के तट पर फेंक रहा है।