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यूपी चुनाव: AIMIM उम्मीदवारों की उम्मीदवारी को चुनौती देने वाली याचिका पर चुनाव आयोग ने मांगा जवाब

चुनाव आयोग ने मौजूदा राज्य विधानसभा चुनाव में जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के नियमों का पालन नहीं करने पर एआईएमआईएम के सभी उम्मीदवारों की उम्मीदवारी रद्द करने की मांग वाली याचिका पर उत्तर प्रदेश चुनाव आयोग से जवाब मांगा है

चुनाव आयोग ने मौजूदा राज्य विधानसभा चुनाव में जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के नियमों का पालन नहीं करने पर एआईएमआईएम के सभी उम्मीदवारों की उम्मीदवारी रद्द करने की मांग वाली याचिका पर उत्तर प्रदेश चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। दिल्ली के वकील और सामाजिक कार्यकर्ता विनीत जिंदल ने एक शिकायत में आरोप लगाया है कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के उम्मीदवारों ने जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 123 (3) और (3ए) का उल्लंघन किया है।
 प्रेस  कॉन्फ्रेंस के दौरान कई ‘विवादास्पद’ बयान और भाषण दिए
शिकायतकर्ता के अनुसार, एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी, जो हैदराबाद से लोकसभा के सदस्य हैं, उन्होंने अपनी चुनाव प्रचार रैलियों और प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कई ‘विवादास्पद’ बयान और भाषण दिए हैं, जिन्हें प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उनकी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए वोट मांगने के लिए व्यापक रूप से प्रसारित किया गया है।
 एआईएमआईएम नेता ने कहा..
उन्होंने कहा, ओवैसी ने भाजपा सरकार पर मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने की अनुमति नहीं देने का आरोप लगाया है और अपने ट्विटर अकाउंट पर एक वीडियो क्लिप भी साझा किया है। इसके अलावा शिकायत में कहा गया है कि एआईएमआईएम नेता ने कहा है, एक दिन एक हिजाबी भारत की प्रधानमंत्री बनेगी। जिंदल ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने का मामला कर्नाटक उच्च न्यायालय में लंबित है और वर्तमान मामले में एक अंतरिम निर्णय पहले ही पारित किया जा चुका है, जो सभी छात्रों को कक्षाओं के भीतर उनके धर्म या संपद्राय की परवाह किए बिना भगवा शॉल, स्कार्फ, हिजाब, धार्मिक प्रतीक पहनने से रोकता है।
अमित शाह यूएपीए
उन्होंने आरोप लगाया कि ओवैसी मुस्लिम समुदाय को उकसाने और मौजूदा चुनावों में एआईएमआईएम उम्मीदवारों के पक्ष में वोट हासिल करने के लिए हिजाब पर उक्त विवाद की गलत व्याख्या और गलत धारणा पेश कर रहे हैं। शिकायतकर्ता ने ओवैसी के 29 जनवरी के टेलीविजन साक्षात्कार पर भी प्रकाश डाला, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा था, 2019 में, जब अमित शाह यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) में संशोधन के लिए एक विधेयक लाए, जिसके आधार पर एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) और दिल्ली में बैठा एक इंस्पेक्टर किसी भी मुसलमान को आतंकवादी घोषित कर सकता है और वह चाहते थे कि उत्तर प्रदेश की 19 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को उचित प्रतिनिधित्व मिले।
अधिनियम 1951 की धारा 123 का उल्लेख करते हुए..
जिंदल ने कहा कि ये बयान देकर उनका एकमात्र मकसद मुसलमानों को धर्म के आधार पर अन्य राजनीतिक दलों के खिलाफ मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए उकसाना था। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 123 का उल्लेख करते हुए शिकायत में कहा गया है कि यह अधिनियम किसी उम्मीदवार या उसके एजेंटों द्वारा अपने धर्म, जाति के आधार पर किसी भी व्यक्ति को वोट देने या मतदान से परहेज करने की अपील भ्रष्ट आचरण के रूप में परिभाषित करता है। इसके तहत जाति, समुदाय या भाषा और धर्म को आधार बनाकर चुनावी प्रक्रिया में कोई भूमिका निभाने की अनुमति नहीं दी जाएगी और अगर ऐसा होता है तो उम्मीदवार के चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया जाएगा।
एआईएमआईएम  उम्मीदवारों की उम्मीदवारी रद्द कर दी जानी चाहिए।
एआईएमआईएम उम्मीदवारों की उम्मीदवारी को चुनौती देते हुए जिंदल ने अपनी शिकायत में कहा कि चुनावी प्रक्रिया राज्य की धर्मनिरपेक्ष गतिविधियां हैं और इसमें धर्म का कोई स्थान नहीं हो सकता। उन्होंने इस विषय पर शीर्ष अदालत के एक फैसले का भी उल्लेख किया और भारत के चुनाव आयोग के समक्ष प्रार्थना करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में लड़ने वाले एआईएमआईएम द्वारा चुनावी मैदान में उतारे गए सभी उम्मीदवारों की उम्मीदवारी रद्द कर दी जानी चाहिए।

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