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विधानसभा अध्सक्ष नारायण दीक्षित ने कहा- यदि संस्कृत नहीं रहेगी तो संस्कृति भी हम नहीं बचा सकते

भारतीय संस्कृति की रक्षा की आवश्यक शर्त है संस्कृत भाषा की रक्षा। भारत संस्कृत और संस्कृति को छोड़कर जिन्दा नहीं रह सकता है।

उत्तर प्रदेश : विधान सभा अध्सक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने शुक्रवार को कहा कि संस्कृत माता एवं संस्कृति उसकी पुत्री है तथा दोनों का प्रभाव साथ-साथ पड़ता है। 
गोरखपुर में स्थित गोरक्षनाथ मंदिर में ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ की 50वीं एवं महन्त अवैद्यनाथ की पाचवीं पुण्यतिथि समारोह में ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एवं संस्कृत’ विषय पर आयोजित सम्मेलन को सम्बोधित करते हुये श्री दीक्षित ने कहा कि संस्कृत बढाने के साथ संस्कृति बढेगी और तभी परमवैभवम्मेंतत्वराष्ट्रम् तक पहुचने का हमारा लक्ष्य पूरा होगा। 
उन्होंने कहा कि हमारे पास दुनिया का प्राचीनतम और श्रेष्ठतम ज्ञान का भण्डार, ग्रन्थ संस्कृत में ही है। भारत ऋषियों-मुनियों और तपस्वियों का देश है। यह नदियों-पर्वतों का देश है और यह आदि संस्कृति और दुनियां की प्राचीनतम भाषा संस्कृत का देश है। उन्होंने कहा कि हमने छह हजार साल से संस्कृति को संजोकर विस्तृत किया। अपनी ज्ञान परम्परा के ग्रन्थों को संजोकर आजतक रखा हैं, वे सभी ग्रन्थ अथवा यह कहें कि ज्ञान परम्परा संस्कृत भाषा में हैं, यही कारण है कि हमारी संस्कृति और संस्कृत एक दूसरे के पूरक हैं और हमने लिखित और मौखिक दोनों परम्पराओं के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक धरोहर बनाए रखी हैं।
दीक्षित ने कहा कि भारत का आदमी अपने ज्ञान को जीता है। इस ज्ञान की अथवा जीवन की भाषा संस्कृत ही हैं इसलिए यदि संस्कृत नहीं रहेगी तो संस्कृति भी हम नहीं बचा सकते। भारतीय संस्कृति की रक्षा की आवश्यक शर्त है संस्कृत भाषा की रक्षा। भारत संस्कृत और संस्कृति को छोड़कर जिन्दा नहीं रह सकता है। 
समारोह के मुख्य अतिथि दिगम्बर अखाड़, अयोध्या के महन्त सुरेशदास ने कहा कि संस्कृत भाषा जीवित होगी तभी भारतीय संस्कृति अक्षुण्य होगी। संस्कृत देववाणी,भारत की वाणी, मानवता की वाणी, करूणा की वाणी, दया की वाणी, अहिंसा की वाणी और फिर ज्ञान-विज्ञान की वाणी है। 
उन्होंने कहा कि ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ कहा करते थे कि संस्कृत भाषा समस्त ज्ञान तथा विज्ञान का बृहद भण्डार है और इस देश के वासी तब तक प्रथम श्रेणी के वैज्ञानिक नही बन सकते जब तक कि वे संस्कृत मे उपलब्ध प्राचीन भारतीय विज्ञानों का उचित अध्ययन नही कर लेते। उन्होंने कहा कि उनकी पुण्यतिथि पर हम ‘संस्कृत और संस्कृति’ की रक्षा का संकल्प लेकर ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते है। 
गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो0 मुरली मनोहर पाठक ने कहा कि अब भारत की राष्ट्रवादी जनता ही संस्कृत भाषा और संस्कृति की रक्षा कर सकती है। श्री गोरक्षनाथ मन्दिर का संस्कृत के संरक्षण में बहुत बड़ योगदान है।

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