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नेताजी के निधन के बाद मैनपुरी में कौन ? अखिलेश के लिए परिवार को संभालना चुनौती

धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अखिलेश यादव के लिए सियासत में काफी चुनौती मिलने वाली हैं, क्योंकि नेताजी के निधन के बाद मुलायम परिवार का कोई भी सदस्य संसद में प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा हैं।

धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अखिलेश यादव के लिए सियासत में काफी चुनौती मिलने वाली हैं, क्योंकि नेताजी के निधन के बाद मुलायम परिवार का कोई भी सदस्य संसद में प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा हैं।  अब मैनपुरी में लोकसभा के उपचुनाव होने हैं, जो अखिलेश यादव के लिए पिता ना होने पर पहला चुनाव होगा। जिसमें अखिलेश यादव को परिवार के साथ विपक्षी दलों से मिलने वाली चुनौती का सामना करना होगा।  मुलायम सिंह यादव मैनपुरी सहित पूर्वांचल की कई लोकसभा सीटों का संसद में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।  मुलायम सिंह यादव मैनपुरी से से 1996, 2004, 2009, 2014 और 2019 में यहां से जीत हासिल की थी।  दरअसल मैनपुरी यादव के साथ पिछड़े वर्ग का बड़ा वोटबैंक हैं।  जिसको ध्यान में रखते हुए अखिलेश यादव ने आजमगढ़ को छोड़कर करहल को चुनने का फैसला किया था।  
परिवार को साधने की चुनौती से पार पाने के लिए शिवपाल को मौका ?
अखिलेश यादव पार्टी को विपक्षी दलों से मिलने वाली चुनौती से पार पाने के लिए मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में पिता के गर्व को बनाए रखने के लिए परिवार को भी साधना चाहेंगे। पूर्व में  यादव परिवार में मचे सियासी घमासान में शिवपाल यादव मैनपुरी सीट पर चुनाव लड़ना चाहते थे , लेकिन नेताजी के लड़ने की खबरों के चलते वह नहीं ऐसा नहीं कर पाए।  लेकिन नेताजी के निधन के बाद उपचुनाव में शिवपाल यादव इस मैनपुरी से ताल ठोक सकते हैं।   लेकिन सूत्रों के अनुसार बताया जा रहा हैं अखिलेश यादव परिवार के अपने विश्वस्त व्यक्तियों को उतार सकते हैं। 
आपको बता दे की अखिलेश यादव के लिए मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा, क्योंकि मैनपुरी लोकसभा सीट परिवार का रसूख रहा हैं , यादव परिवार इटावा से ज्यादा मैनपुरी से लगाव करता हैं , पूर्वांचल की राजनीति में मैनपुरी हमेंशा से सियासत का केंद्र रहा । रक्षामंत्री रहते हुए भी मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी का ही संसद में प्रतिनिधित्व किया था । इस चुनाव में परिवार में बढ़ी सियासी फूट में अखिलेश यादव को शिवपाल यादव के विश्वास को अर्जित करना होगा । क्योंकि इससे पूर्व दो लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी अपने गढ़ो में ही सत्तारूढ दल बीजेपी से ही मात खा चुकी हैं ।

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