समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव और उनके भाई शिवपाल सिंह यादव के बीच छिड़ी सियासी जंग से मुस्लिम मतदाता उहापोह (असमंजस) की स्थित में है। इस घमासान के बीच उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के अखिलेश और शिवपाल चुनावी मैदान में खुद को बड़ा साबित करने के लिए अलग-अलग रथयात्रा निकाल रहे हैं। 12 अक्टूबर को शिवपाल सिंह यादव ने मथुरा से सामाजिक परिवर्तन रथयात्रा और अखिलेश यादव ने कानपुर से समाजवादी विजय रथयात्रा निकल एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंक दी है।
वहीं दूसरी तरफ सपा से जुड़े मुस्लिम समाज के लोग यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि इन दोनों नेताओं के बीच छिड़े घमासान को लेकर आखिर वह करें तो क्या करें? राजनीतिक पंडितों की माने तो फिलहाल सपा के पारंपरिक कहे जाने वाले इस वोट बैंक में फैली सियासी अनिश्चितता ने बसपा सहित अन्य दलों की बांछें खिला दी हैं। यह सभी दल सपा के इन वोटरों की सेंधमारी में जुटे हैं। इसी के चलते बसपा नेताओं ने बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट देने की तैयारी की है। ओवैसी भी सपा से खफा मुस्लिम नेताओं को अपने साथ जोड़ने की जुगत में लग गए हैं।
सपा की राजनीति पर नजर रखने वाले समीक्षकों के अनुसार अखिलेश और शिवपाल के बीच घमासान का नुकसान फिर अखिलेश को उठाना पड़ सकता है। इसलिए अखिलेश को अपने चाचा से संघर्ष करने के बजाये उनके साथ चुनावी गठबंधन करना चाहिए। अखिलेश जब ओम प्रकाश राजभर से चुनावी गठबंधन के लिए वार्ता कर रहे हैं तो फिर उन्हें शिवपाल से परहेज क्यों हैं? उनका कहना है कि यादव और मुस्लिम चाहता है कि अखिलेश यादव अपने चाचा के साथ अपने रिश्ते ठीक करें वरना मुस्लिम समाज सपा से दूरी बना लेगा।
राज्य की 403 विधान सभा सीटों में से 147 ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता हार-जीत का फैसला करने की ताकत रखता है। इस वोट बैंक वजह से सपा को फायदा भी हुआ है। सूबे के जातीय आंकड़ों के अनुसार, रामपुर में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। रामपुर में जहां मुसलमान मतदाताओं का प्रतिशत 42 है। मुरादाबाद में 40 फीसदी, बिजनौर में 38, अमरोहा में 37, सहारनपुर में 38, मेरठ में 30, कैराना में 29, बलरामपुर और बरेली में 28, संभल, पडरौना और मुजफ्फरनगर में 27, डुमरियागंज में 26 और लखनऊ, बहराइच व कैराना में मुसलमान मतदाता 23 प्रतिशत हैं।
इनके अलावा शाहजहांपुर, खुर्जा, बुलंदशहर, खलीलाबाद, सीतापुर, अलीगढ़, आंवला, आगरा, गोंडा, अकबरपुर, बागपत और लखीमपुर में मुस्लिम मतदाता कम से कम 17 प्रतिशत है। सपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि अखिलेश और शिवपाल के बीच तल्खी को नेता जी चाहे तो खत्म करा सकते हैं, लेकिन वह इस विषय में कोई ध्यान नहीं दे रहे है। जिससे हालात और खराब हो रहे है। इसका असर चुनाव पर भी पड़ेगा क्योंकि शिवपाल अनुभवी नेता और शह और मात की राजनीति के पुराने और मंझे हुए खिलाडी हैं। शिवपाल भले ही संगठन के दम पर अखिलेश का कुछ ज्यादा नुकसान न कर पाएं, लेकिन खेल खराब करने की क्षमता उनमें है।
बीते विधानसभा चुनाव में शिवपाल सिंह यादव से हुए संघर्ष के चलते सपा 47 सीटों पर ही सिमट गयी थी। इसके बाद भी सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कोई सबक नहीं सीखा और शिवपाल सिंह यादव के साथ गठबंधन नहीं किया। जबकि शिवपाल सिंह ने हर मंच से यह कहा कि वह सपा से गठबंधन चाहते हैं, लेकिन अखिलेश यादव ने उनकी तरफ दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाया।
यह जानते हुए कि इटावा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, एटा, बदायूं, कन्नौज, फरुर्खाबाद, कानपुर देहात, आजमगढ़, गाजीपुर जौनपुर, बलिया आदि जिलों में शिवपाल सिंह यादव का प्रभाव है, इन जिलों के यादव और मुस्लिम समाज के लोग शिवपाल को मानते हैं, फिर भी अखिलेश ने इनसे दूरी बनाए रखी तो अब शिवपाल सिंह यादव ने भी अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए रथयात्रा शुरू कर दी।
नए वोटर बनें इरफान का कहना है कि अभी चुनाव में लंबा टाइम है। वोट किसे देना इसका निर्णय समय आने पर करेंगे। जो मुस्लिमों को भला करेगा। वोट तो उसी को दिया जाएगा। वहीं दो बार अपने मत का प्रयोग कर चुके दानिश कहते हैं कि चाचा भतीेजे की लड़ाई में कार्यकतार्ओं का नुकसान हो रहा है। वह समझ नहीं पा रहे कि किसे वोटे दें। खैर बड़ो का सम्मान कर इस लड़ाई को खत्म करें तभी प्रदेश में सफलता मिलेगी।
इस बारे में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सपा से जुड़े मुस्लिम मतदाता अब अखिलेश और शिवपाल के बीच बंट रहे हैं। जिस मुस्लिम मतदाताओं ने बीते विधानसभा चुनावों में अखिलेश का साथ दिया था, वह भी अब उनसे नाता तोड़ रहे हैं।