पहाड़ों पर चट्टानी Pyramid क्यों बनाते हैं पर्यटक? जानिए इसके पीछे की दिलचस्प वजह

पहाड़ों पर चट्टानी Pyramid क्यों बनाते हैं पर्यटक? जानिए इसके पीछे की दिलचस्प वजह
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दुनिया भर में घूमने के लिए कई ऐसी जगह है जो लोगों की पहली पसंद बन जाती हैं। किसी जगह की खूबसूरती लोगों को अपनी तरफ खींचती है तो किसी जगह की परंपरा जैसे फ्रांस की राजधानी पेरिस में सेन भीतर नदी के ऊपर बना हुआ एक पल जो की प्रेमी जोडो के लिए अपने आप में सबसे खास है इसी के चलते यहां अब यह परंपरा बन गई है। पल के ऊपर अपने प्रेमी के याद में ताला बांधना आदि सब परंपरा बन गई है।
यहां लव बर्ड्स आते और ब्रिज की रेलिंग पर ताले लटकाते थे और चाबी नदी में फेक दिया करते थे। उनका मानना था कि इनसे उनका प्यार सलामत रहेगा। हालांकि तालों से ब्रिज का वजन काफी बढ़ गया था जिसके चलते ये परंपरा वहीं रूक गई। लेकिन आज हम आपको ऐसी ही एक जगह के बारे में बताने वाले है जहां पर्यटक आते हैं और पहाड़ों पर चट्टानी पिरामिड बना कर जाते हैं। इसके पीछे का क्या कारण है आई जानते है।
कहां से आई परंपरा?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस में ऊंचे इलाकों या पहाड़ी इलाकों पर चट्टानी पिरामिड दिखाना आम है। जिन्हें रूस में 'गुरियास' या 'टूर्स' कहा जाता है। वहीं इंग्लैंड में इन्हें 'केर्न्स कहते है। लेकिन सवाल है कि ये परंपरा कहां से आई? तो बता दें, पुराने समय में, दुनिया भर के लोग ऐतिहासिक स्थलों के रूप में ऐसे पिरामिड बनाते थे। जैसे, बड़े पिरामिड दफन टीले या डोलमेंस की ओर इशारा करते थे। वहीं कुछ दूरी पर रखे गए 'गुरिया' गति की दिशा का संकेत दे सकते हैं। इस बीच, एक पहाड़ की चोटी पर 'गुरियास', हाईएस्ट प्वाइंट को मार्क करता है।
आत्माओं के सम्मान के लिए
वहीं, ब्यूरेट्स और तुवीनियों में भी ऐसी ही संरचनाएं देखने के लिए मिलती हैं। जिसे 'ओबो' कहा जाता हैं। ये सड़कों और पहाड़ी रास्तों के पास भी पाई जाती हैं। वहीं इन सरंचनाओं पर रिबन भी देखें जा सकते है। मालूम हो, 'ओबोस' को स्थानीय आत्माओं के सम्मान के रूप में रखा जाता हैं।
पहाड़ों का पता लगाना
वहीं कुछ मॉडर्न पैदल चलने वाले यात्री भी इन चट्टानों को बनाते है। वे पिरामिड को पहाड़ों का पता लगाने, अपने रास्ते को मार्क करने, खो जाने से बचने और भविष्य के पैदल यात्रियों के लिए अपनी छाप छोड़ने के लिए भी इनको बनाते हैं।
हालाँकि, ऐसे टूरिसट भी हैं जो जड़ता से ही पिरामिड बनाते हैं। यह कुछ हद तक शिलालेख जैसा है: "इवान यहाँ था", लेकिन पत्थर से बना है। अब शायद आपको पता लग गया होगा कि पहाड़ों पर चट्टानी पिरामिड बनाने के पीछे क्या वजह होती है।

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