शायर आलोक श्रीवास्तव के फेमस शेर

Simran Sachdeva

ये सोचना ग़लत है के' तुम पर नज़र नहीं, मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बेख़बर नहीं

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अब तो ख़ुद अपने ख़ून ने भी साफ़ कह दिया, मैं आपका रहूंगा मगर उम्र भर नहीं

ज़रा पाने की चाहत में बहुत कुछ छूट जाता है, नदी का साथ देता हूं, समंदर रूठ जाता है

जिसका तारा था वो आंखें सो गई हैं, अब कहां करता है मुझ पर नाज़ कोई

अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है, अम्मा जी की सारी सजधज, सब ज़ेवर थे बाबूजी

एक दिन उसने मुझे पाक नज़र से चूमा, उम्र भर चलना पड़ा मुझको सहारे लेकर

आए थे मीर ख़्वाब में कल डांट कर गए, क्या शायरी के नाम पर कुछ भी नहीं रहा

घर के बुज़ुर्ग लोगों की आंखें क्या बुझ गईं, अब रोशनी के नाम पर कुछ भी नहीं रहा

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