लंदन/पेरिसः दुनिया के दक्षिण ध्रुव पर बसे अंटार्कटिका से भारत की राजधानी दिल्ली से भी चार गुना बड़ा हिमखंड टूट गया है, जो अपने साथ तबाही का मंजर लेकर आ रहा है। वैज्ञानिकों ने कहा कि करीब एक खरब टन का हिमशैल (अब तक के दर्ज आंकड़ों में सबसे बड़ा) कई महीनों के पूर्वानुमान के बाद अंटार्कटिका से टूटकर अलग हो गया है और अब दक्षिणी ध्रुव के आसपास जहाजों के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। लार्सन सी बर्फ की चट्टान से 5800 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा अलग हो जाने से इसका आकार 12 फीसदी से ज्यादा घट गया है और अंटार्कटिक प्रायद्वीप का परिदृश्य हमेशा के लिए बदल गया है। बताया जा रहा है कि इसका असर भारत के अंडमान-निकोबार आैर सुंदरवन डेल्टा पर भी पड़ सकता है।
हालांकि, अंटार्कटिका से हमेशा हिमशैल अलग होते रहते हैं, लेकिन यह क्योंकि खास तौर पर बड़ा है, ऐसे में महासागर में जाने के इसके रास्ते पर निगरानी की जरूरत है। इसका कारण यह है कि यह नौवहन यातायात के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। सालों से पश्चिमी अंटार्कटिक हिम चट्टान में बढ़ती दरार को देख रहे शोधकर्ताओं ने कहा कि यह घटना 10 जुलाई से लेकर बुधवार के बीच किसी समय हुई है। इस हिमशैल को ए68 नाम दिये जाने की संभावना है और यह एक खरब टन से ज्यादा वजनी है। सबसे बड़ी लहरों में से एक लेक इरी के विस्तार से दो गुना है।
अंटार्कटिका का है सबसे बड़ा हिमचट्टान
अंटार्कटिका से अलग होने वाला यह हिमशैल वहां मौजूद चौथे सबसे बड़े हिमचट्टान लार्सेन सी एक बहुत बड़ा हिस्सा है। इस हिमखंड का वजन खरबों टन बताया जा रहा है और यह संभवतः अब तक का सबसे बड़ा टुकड़ा है जो हिमचट्टान से अलग हुआ हो. इस हिमखंड का आकार 5 हजार 80 वर्ग किलोमीटर है। जो भारत की राजधानी दिल्ली के आकार से 4 गुना बड़ा है। गोवा के आकार से डेढ़ गुना बड़ा और अमेरिका के न्यू यॉर्क शहर से 7 गुना बड़ा है।
क्या होगा असर?
वैज्ञानिकों की मानें, तो इस हिमखंड के अलग हो जाने से वैश्विक समुद्री स्तर में 10 सेंटीमीटर की वृद्धि हो जायेगी। इस महाद्वीप के पास से होकर गुजरने वाले जहाजों के लिए भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के मुताबिक, यह हिमखंड 10 और 12 जुलाई के बीच टूटकर अलग हुआ है। इस हिमखंड का नाम ए68 रखा जा सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक समुद्र स्तर पर इस हिमखंड के अलग होने से तत्काल असर नहीं आयेगा, लेकिन यह लार्सेन सी हिमचट्टान के फैलाव को 12 प्रतिशत तक कम कर देगा। लार्सेन ए और लार्सेन बी हिमचट्टान साल 1995 और 2002 में ही ढहकर खत्म हो चुके हैं।
भारत पर क्या होगा असर?
वैज्ञानिकों ने इस हिमखंड के अलग होने के पीछे कार्बन उत्सर्जन को सबसे बड़ी वजह बताया है। उनके मुताबिक, कार्बन उत्सर्जन से वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। जिससे ग्लेशियर जल्दी पिघलते जा रहे हैं। समुद्री स्तर में बढ़ोतरी होने से अंडमान और निकोबार के कई द्वीप और बंगाल की खाड़ी में सुंदरवन के हिस्से डूब सकते हैं। हालांकि, अरब सागर की तरफ इसका असर कम होगा, लेकिन यह लंबे समय में दिखेगा। भारत की 7 हजार 500 किलोमीट लंबी तटीय रेखा को इससे खतरा है।