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अफगानिस्तान: काबुल विश्वविद्यालय में फंसे भारतीय शिक्षकों को मोदी सरकार से आस, सरकार से निकालने की लगाई गुहार

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से गोलियों की आवाज नहीं सुनाई दे रही है लेकिन बीतते समय के साथ संकट गहरा रहा है। यह कहना है युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में फंसे चार भारतीय शिक्षकों का जिन्होंने तुरंत उन्हें वहां से निकालने की अपील की है।

अफगानिस्तान में अशरफ गनी सरकार ने तालिबान के आगे अपने घुटने टेक दिए और राष्ट्रपति ने तो देश ही छोड़ दिया। अफगानिस्तान सेना ने बिना लड़े ही तालिबान के लड़ाकों के आगे सरेंडर कर दिया और अपने बड़े-बड़े हथियार उनके सामने डाल दिए। ऐसे में अफगानिस्तान की जनता का हाल तो बहुत ही बुरा और भयावह होने की पूरी संभावना है। वहीं, तालिबान के कब्जे के बाद उनका क्रूूर शासन दिखने लगा है।
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से गोलियों की आवाज नहीं सुनाई दे रही है लेकिन बीतते समय के साथ संकट गहरा रहा है। यह कहना है युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में फंसे चार भारतीय शिक्षकों का जिन्होंने तुरंत उन्हें वहां से निकालने की अपील की है ताकि वे अपने परिवारों के पास लौट सके। चारों भारतीय शिक्षक काबुल स्थिति बख्तर विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं जिस पर तीन दिन पहले तालिबान ने कब्जा कर लिया है।
मोहम्मद आसिफ शाह ने फोन पर बातचीत में कहा, ‘‘ हमने भारत में हर संभव मंच पर संपर्क किया। हम उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार यहां से हमारी तत्काल निकासी सुनिश्चित करने के लिए कुछ न कुछ करेगी। हमने पिछले दो दिन से विश्वविद्यालय परिसर के बाहर कदम नहीं रखा है और हर वक्त बाहर हंगामा होता है, मेरा दिल घबरा रहा है।’’ शाह कश्मीर के रहने वाले हैं और काबुल स्थित विश्विवद्यालय में गत चार साल से अर्थशास्त्र पढ़ा रहे हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें और उनके सहयोगियों को डर है कि मौजूदा माहौल में कुछ भी अनहोनी हो सकती है।
शाह ने कहा, ‘ मेरी योजना सोमवार को लौटने की थी। यहां तक कि मैने टिकट भी बुक करा लिया था लेकिन स्थिति तेजी से बदली। मुझे हवाई अड्डे पहुंचने में घटों लग गये और ऐसा लगा कि पूरा काबुल हवाई अड्डे पर जमा हो गया है। उड़ान रद्द कर दी गई और मेरे पास विश्वविद्यालय हॉस्टल लौटने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था।’’ वह दो महीने पहले ही सरकार द्वारा ऑफलाइन कक्षाएं शुरू करने के फैसले के बाद अफगानिस्तान लौटे थे।
विश्वविद्यालय में मार्केटिंग विषय पढ़ाने वाले बिहार के रहने वाले सैयद आबिद हुसैन ने कहा कि हालात को देखते हुए वह अबतक सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम इस अनिश्चितता में नहीं रहना चाहते हैं। हम दूतावास और विदेश मंत्रालय के संपर्क में रहने की कोशिश कर रहे हैं। हमारी अबतक सुनी नहीं गई है लेकिन मुझे भरोसा है कि सरकार हमें काबुल से सुरक्षित निकालने के लिए कोशिश कर रही है।’’
विश्वविद्यालय में ही पत्नी के साथ रह रहे कश्मीर के आदिल रसूल ने कहा, ‘‘हम प्रार्थना कर रहे हैं कि स्थिति और खराब नहीं हो तथा हम सुरक्षित घर लौट सके।’’ वर्ष 2017 से ही विश्वविद्यालय में प्रबंधन विषय पढ़ा रहे रसूल ने कहा कि इस समय सभी विश्वविद्यालय परिसर में हैं और भारतीय दूतावास या सरकार से सकारात्मक पहल का इंतजार कर रहे हैं।
विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान पढ़ा रहे झारखंड के अफरोज आलम ने कहा कि अबतक यहां कोई खून खराबा नहीं हुआ है लेकिन भय का माहौल बना हुआ है। उन्होंने कहा, ‘‘अबतक बाहर कोई खूनखराबा नहीं हुआ है। हमने शहर में गोलियों की भी आवाज नहीं सुनी है लेकिन हमें भय है कि कहीं यह शांति क्षणिक न हो। परिसर बड़ा है, इसलिए हम जरूरतों के लिए बाहर नहीं जाते। मैं बस यहां से सुरक्षित निकलने की उम्मीद कर रहा हूं।’’

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