तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान आतंकियों को सीक्रेट मिशन में अमेरिका मार गिराएगा या नहीं यह एक बड़ा सवाल बन गया है। जहाँ एक और सवाल सामने आ रहा है कि आख़िर क्यों तालिबान ने बाइडेन के लिए सबसे बड़ी चिंता बन गया है। दरअसल ऐसा माना जा रहा है कि अल ज़वाहिरी की तरह तहरीक ए तालिबानआतंकियों को सीक्रेट मिशन में अमेरिका मार गिराएगा।
आतंकवादी समूहों को आश्रय नहीं देने की रखी गई थी शर्त
अमेरिका ने जब अफगानिस्तान में दशकों से चले आ रहे युद्ध को समाप्त कर अपनी सेना को वापस बुला लिया तो उसने यह शर्त रखी थी कि तालीबान सरकार वापस आने के बाद आतंकवादी समूहों को कोई आश्रय नहीं देगा। हालांकि आज की तस्वीर देख कर यही लग रहा है कि तालीबान अमेरिका से किए अपने वादे को खास तवज्जोह नहीं दे रहा है। तालीबान ने अपने पुराने मित्र पाकिस्तान से भी संबंध खराब कर लिए हैं। वो लगातार ‘तहरीक-ए-तालीबान पाकिस्तान’को सरहद पार से समर्थन दे रहा है।
अब पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ रही है
काबुल पर तालीबान के कब्जे का सबसे पहले स्वागत पाकिस्तान ने ही किया था. उस समय की इमरान खान सरकार ने तो तालीबान लड़ाकों को मुजाहिदीन भाई और पाकिस्तान का दोस्त करार दिया था. खुद तत्कालीन पाकिस्तानी आंतरिक मंत्री शेख रशीद ने सार्वजनिक तौर पर कबूला था कि तालीबान आतंकियों के रिश्तेदार उनके देश में पनाह लिए हुए हैं. घायल होने पर इन आतंकियों का इलाज पाकिस्तानी जमीन पर किया जाता है.
तालीबान और पाकिस्तान के बीच तनाव अमेरिका के लिए भी चिंता का विषय
दरअसल,पिछले साल तहरीक-ए-तालीबान पाकिस्तान के नेता नूर वली महसूद ने सीएनएन को बताया था कि काबुल से अमेरिका को बाहर निकालने में मदद करने के बदले में अब वो चहते हैं कि पाकिस्तान में उनकी लड़ाई में अफगान तालीबान से उनको समर्थन मिले. बता दें कि तहरीक-ए-तालीबान पाकिस्तान में अपने देश की सरकार को उखाड़ फेंकना चाहता है और अपना सख्त इस्लामिक कानून लागू करना चाहता है.इस सप्ताह सीएनएन के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, महसूद ने इस्लामाबाद पर युद्धविराम के टूटने का आरोप लगाते हुए कहा, “उन्होंने संघर्ष विराम का उल्लंघन किया और हमारे दस साथियों को शहीद कर दिया और दस को गिरफ्तार कर लिया.”ऐसी स्थिति से न केवल पाकिस्तान में हिंसा बढ़ने का खतरा है, बल्कि अफगान और पाकिस्तानी सरकारों के बीच सीमा पर तनाव में संभावित वृद्धि का भी खतरा है.