मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक शीर्ष अधिकारी ने आरोप लगाया है कि भारत में संगठन के बैंक खातों से लेन-देन पर रोक लगाए जाने के बाद उसे वहां से अपने सभी कर्मचारियों को हटाने और सभी मानवाधिकार कार्यों को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। एमनेस्टी इंटरनेशनल यूएसए में ‘एडवोकेसी एंड गवर्नमेंट अफेयर्स ’ की राष्ट्रीय निदेशक जोन लिन ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों पर अमेरिकी संसद की सुनवाई के दौरान ये आरोप लगाए।
उल्लेखनीय है कि भारत के गृह मंत्रालय ने अक्टूबर में कहा था कि संगठन का यह दावा कि उसे चुनिंदा तरीके से निशाना बनाया गया, दुर्भाग्यपूर्ण है और बढ़ा चढ़ा कर कही गई बात है जो सच्चाई से कोसों दूर है। जानकारी के लिए आपको बता दें कि FCRA एक्ट में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने नागरिक समाज से जुड़े संगठन पर शिकंजा कसने का प्रयास किया है साथ ही उन्हें विदेशों से प्राप्त हो रही धनराशि या अनुदान पर कुछ अंकुश लगाकर सरकार को इस सम्बन्ध में पूरी जानकारी उपलब्ध करने के भी प्रावधान दिए गए है।
नए विनियमन विदेशी संस्थानों से संबंध रखने वाले सिविल सोसायटी, गैर-सरकारी संगठनों पर मुश्किल शर्तें लाद रहा है। इसलिए सरकार की ओर से एमनेस्टी इंटरनेशनल और अन्य संगठनों पर कड़ी कार्यवाई की गई। सरकार द्वारा की गई इस कार्यवाई पर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने यह आरोप लगाया था कि संगठन ने दिल्ली दंगो में दिल्ली पुलिस पर निशाना साधते हुए हिंसा में शामिल होने का आरोप लगाया था जिसके बदले में सरकार ने एमनेस्टी के खिलाफ इस तरह की कार्यवाई की और संगठन ने भारत में काम करना बंद कर दिया।