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लद्दाख में भारत से पिटने बाद चीन बैकफुट पर, शी चिनफिंग के लिए भारी पड़ रहा है कुर्सी बचाना

चीनी राष्ट्रपति ने भारतीय सीमा क्षेत्र में घुसपैठ का प्रयास करके अपने भविष्य को जोखिम में डाल दिया है क्योंकि यह भारतीय सेना की कड़ी जवाबी कार्रवाई के बाद अप्रत्याशित रूप से विफल रहा।

एलएसी पर भारत और चीन के बीच लगातार चला आ रहा तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है और कई दौर की सैन्य वार्ताओं के बावजूद दोनों सेनाएं एक दूसरे के सामने डटी हुई है। भारत इस समय चीन से बेहतर स्थिति में है और कई मोर्चों पर ड्रैगन को मात देता दिखाई दे रहा है। पूर्वी लद्दाख में फिंगर-4 के अलावा ब्लैक टॉप, हेल्मेट और रेकिन ला क्षेत्र के ऊंचाई वाले स्थानों पर नियंत्रण करके भारतीय सेना ने पैंगॉन्ग त्सो झील के आसपास अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। 
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रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण ऊंचाई वाले क्षेत्रों पर अपनी पहुंच स्थापित करते हुए भारतीय सैनिक फिलहाल अपने विरोधियों के मुकाबले लाभ की स्थिति में हैं। चीनी अब चुशुल-डेमचोक मार्ग का निरीक्षण करने के लिए खुद को संघर्षरत पाएंगे। अगर पहाड़ पर युद्ध की बात करें तो इस मामले में भी भारतीय जवान चीन से बेहतर प्रशिक्षित होते हैं।
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भारत के खिलाफ चीनी सेना के आक्रामक कदमों के पीछे राष्ट्रपति शी चिनफिंग को जिम्मेदार ठहराते हुए अमेरिका की एक प्रमुख पत्रिका ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि चीनी राष्ट्रपति ने भारतीय सीमा क्षेत्र में घुसपैठ का प्रयास करके अपने भविष्य को जोखिम में डाल दिया है क्योंकि यह भारतीय सेना की कड़ी जवाबी कार्रवाई के बाद अप्रत्याशित रूप से विफल रहा। 
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पत्रिका ”न्यूजवीक” ने एक अपने एक लेख में कहा कि कम्युनिस्ट पार्टी में सुधार आंदोलन और दुश्मनों के उत्पीड़न में पहले से ही उलझे 67 वर्षीय शी भारतीय सीमा पर चीन की नाकामी के बाद कोई अन्य क्रूर कदम उठाएंगे। सही के ऊपर अपने देशवासियों को भरोसा दिला पाना भी काफी मुश्किल साबित होता जा रहा है। 
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लेख में कहा गया है, ” यह शी के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है, भारत के खिलाफ आक्रामकता वाले कदमों के वही कर्ताधर्ता हैं और उनकी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) अप्रत्याशित रूप से नाकाम साबित हुई है। भारतीय सीमा पर चीनी सेना की विफलताओं के अपने परिणाम होंगे।” 
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पत्रिका ने चेताया कि सबसे अहम बात यह है कि विफलता के कारण चीन के शासक शी चिनफिंग भारत के खिलाफ कोई अन्य आक्रामक कदम उठाने को प्रोत्साहित हो सकते हैं जोकि अपनी पार्टी की केंद्रीय सैन्य आयोग के अध्यक्ष भी हैं और पीएलए के भी प्रमुख हैं। 
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त्रों का कहना है कि एक वरिष्ठ चीनी अधिकारी ने 30 अगस्त को पैंगॉन्ग झील के दक्षिणी और उत्तरी किनारे पर भारतीय सेना द्वारा कब्जा किए जाने के बाद जवाबी हमले और इसे फिर से हासिल करने से इनकार कर दिया। भारतीय सैनिकों का सामना करने के डर ने तो चीनी सेना की रातों की उड़ा रखी है। 

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