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बाइडन के कार्यकाल में चीन, अमेरिका ने सैन्य स्तर की पहली वार्ता की, अफगान संकट पर चर्चा

चीन और अमेरिका ने इस साल जनवरी में राष्ट्रपति जो बाइडेन के सत्ता में आने के बाद अपने पहले दौर की सैन्य-स्तरीय वार्ता के दौरान अफगानिस्तान में तेजी से बदल रहे हालात पर चर्चा की।

चीन और अमेरिका ने इस साल जनवरी में राष्ट्रपति जो बाइडेन के सत्ता में आने के बाद अपने पहले दौर की सैन्य-स्तरीय वार्ता के दौरान अफगानिस्तान में तेजी से बदल रहे हालात पर चर्चा की। 
अंतरराष्ट्रीय सैन्य सहयोग के लिए पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफिस के उप निदेशक मेजर जनरल हुआंग जुएपिंग ने पिछले हफ्ते अपने अमेरिकी समकक्ष माइकल चेज के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए बातचीत की। हांगकांग के अखबार ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ ने सैन्य अधिकारियों के हवाले से कहा है, ‘‘अफगानिस्तान संकट, सबसे जरूरी मुद्दों में से एक है जिस पर चर्चा करने की आवश्यकता है…चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने (इस साल की शुरुआत में) अलास्का वार्ता में इस मुद्दे को उठाया था, लेकिन उनके अमेरिकी समकक्ष ने इसे नजरअंदाज कर दिया।’’ 
बाइडन के सत्ता में आने के बाद मार्च में अमेरिका और चीन ने अलास्का में अपनी पहली उच्च स्तरीय वार्ता की, जहां वांग और शीर्ष चीनी राजनयिक यांग जिएची ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन के साथ बातचीत की। 
चीनी अधिकारी ने कहा, ‘‘चीनी सेना ने बीजिंग में अमेरिकी दूतावास में रक्षा अताशे के माध्यम से मध्यम-स्तरीय सैन्य संवाद माध्यम बनाए रखा है, और (पिछले सप्ताह की बातचीत में) पहली बार वरिष्ठ अधिकारियों ने बातचीत फिर से शुरू की है।’’ 
वांग और चीन के विदेश नीति प्रमुख यांग ने मार्च में अलास्का में अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन से मुलाकात की थी तब चीन ने अफगानिस्तान के बारे में खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान करने की उम्मीद की थी क्योंकि बीजिंग का मानना था कि अगर अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुला लिया तो स्थिति जटिल और जोखिम भरी हो जाएगी। 
चीनी सैन्य अधिकारी के हवाले से खबर में कहा गया है, ‘‘अगर अमेरिका और चीन, अफगानिस्तान के जोखिम आकलन को लेकर बातचीत शुरू कर देते तो इससे दोनों देशों को इतना नुकसान नहीं होता। चीन ने तीन महीने पहले अपने लगभग सभी नागरिकों को निकाल लिया।’’ 
चीनी अधिकारी ने कहा, ‘‘चीन को इस बात की चिंता है कि चरमपंथी ताकतें, खासकर ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट(ईटीआईएम) अफगानिस्तान में अराजकता के बीच अपनी शक्ति और प्रभाव का विस्तार करेगी, जिसे रोकने के लिए चीन, अमेरिका और अन्य देशों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है।’’

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