चीन अपनी विस्तार वाद नीति के तहत ताइवान को अपने कब्जे में लेना चाहता हैं, चीन समय -समय पर ताइवान को लेकर सैन्य कार्रवाई की धमकी देकर उसको दवाब में लेने की कोशिश करता हैं ताकि ताइवान उसकी मांगों को स्वीकार करके चीन में अपना विलय करले। चीन हर किसी देश से सीमा को लेकर संघर्षरत रहता हैं, जब भी कोई नेता ताइवान का दौरा करता हैं तो चीन भड़क उठता हैं और प्रतिबंधों के साथ हर तरह की धमकी देता हैं। यही नहीं ताइवान को घेर 6 स्थानों पर उसने सैन्य अभ्यास भी शुरू किया है, जिसे उसकी दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। कयास यहां तक लग रहे हैं कि चीन की ओर से ताइवान को सबक सिखाने के लिए अटैक भी किया जा सकता है। लेकिन चीन की सैन्य समझ को जानने वाले मानते हैं कि वह फिलहाल ऐसा नहीं करने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि ताइवान के पीछे अमेरिका की सैन्य समझ लग रही हैं, अमेरिका की सेना से चीन टक्कर नहीं ले सकती, चीन भी रूस की तरह जल्द बाजी ताइवान जैसे देश में अपना आप को खपाना नहीं चाहता।
क्या हैं आर्ट |ऑफ चीन की रणनीति का सिद्धांत
माओवाद चीन अपने सीमावर्ती देशों पर कब्जा करने के लिए हमेशा सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करता रहता हैं। ताकि दुश्मन देश लड़ने से पहले ही अपने घुटने टेक ले। चीन के एक रणनीतिकार ने प्राचीन मध्य में एक सुन त्जू के व्यक्ति ने दुश्मन को बिना लडे जीतने के सिद्धांत पर पुस्तक लिखी थी। जिसका चीन आज भी अपना उपयोग करता हैं। पुस्तक में लिखा हैैं कि दुश्मन पर इतना दबाव डाला जाए और उसे ऐसे घेर लिया जाए कि वह खुद से बिखर जाए या फिर सरेंडर कर दे। चीन की युद्ध रणनीति में इस आर्ट ऑफ वार की छाप हमेशा ही दिखी है।
अरूणाचल लद्दाख व समुंद्र साउथ चाइना सी में सैन्य अभ्यास कर दवाब बनाने का करता हैं काम
चीन के सामने सबसे बड़ी चुनौती भारत बनकर उभरा हैं। इसके अलावा थल ही जल में सीमा को विवादित रूप देता हैं , वह वियतनाम जैसे देशों पर अपना दवाब बनाने के लिए नेवी का सैन्य अभ्यास करता रहता हैं , ताकि देशों पर दवाब बनाए रखे बल्कि युद्ध की स्थिति के तैयार भी रहता हैं। ऐसा ही उसने 1962 में अचानक भारत पर हमला करके किया था। इसके अलावा तिब्बत पर भी उसने अचानक ही अटैक किया था और इतनी तैयारी के साथ ऐक्शन लिया था कि तिब्बतियों का विद्रोह कमजोर पड़ गया।