चीन में लगातार कोरोना के मामले बढ़ रहे है जिसकी वजह से चीन की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। वैसे तो कोरोना ने हर किसी देश की अर्थव्यवस्था पर किसी न किसी तरह से असर डाला है, कोरोना ने कई लाख नौकरियों को खत्म किया जिसके बाद से ही बेरोजगारी लगातार बढ़ती जा रही है।
इसका असर अब भी देखा जा सकता है। लंदन की एक सर्वे कंपनी ने कहा है कि कोविड के बढ़ते मामलों के कारण ऐसी कंपनियों का प्रतिशत बढ़ा है जिन्होंने महामारी से नकारात्मक रुप से प्रभावित होने की बात मानी है।उनके कार्य किसी न किसी कारण से प्रभावित हुए है।
सेल्स मैनेजर्स के एक सर्वे में कहा गया है। चीन का बिजनेस कॉन्फिडेंस जनवरी 2013 से अब तक की अवधि में सबसे निचले स्तर पर आ गया है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कोविड के बढ़ते केसों के कारण आर्थिक गतिविधियों में गिरावट और महामारी को काबू में करने के लिए सख्ती से कानून को लागू किया गया । वर्ल्ड इकोनॉमिक्स सर्वे के परिणाम बताते है कि चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी है। बता दे कि 7 दिसंबर को कोरोना के खिलाफ जारी गाइडलाइन की सख्ती में छूट के बाद चीन में कोरोना के केसो में इज़ाफा देखने को मिला।
क्या कहता है वर्ल्ड इकोनॉमिक्स सर्वे
वर्ल्ड इकोनॉमिक्स का यह सर्वे लगभग 2300 कंपनियों के सेल्स मैनेजर्स पर किया गया। सर्वे 1 दिसंबर से 16 के बीच किया गया। इसके मुताबिक चीन की जीडीपी इस वर्ष तीन प्रतिशत की दर से बढ़ने की आशंका है। पिछली आधी सदी में चीन का सबसे खराब प्रदर्शन होगा। वर्ल्ड इकोनॉमिक्स की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया। चीन की अर्थव्यवस्था की गति धीमी पड़ गई है। आने वाले 2023 में चीन को मंदी की ओर ले जा सकता है। सर्वे के अनुसार दिसंबर महीने में आर्थिक कार्यों में तेजी से गिरावाट आई है। निर्माण और सेवा क्षेत्र दोनों में सेल्स मैनजर्स इंडेक्स 50 के लेवल से निचले स्तर पर आ चुका है। चीन ने हाल ही में दुनिया के सबसे कठिन कोविड-रोधी प्रतिबंधों और लॉकडाउन के कुछ प्रमुख हिस्सों को खत्म कर दिया है। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने इन कदमों का समर्थन किया था लेकिन इन कदमों ने अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया और उनके कारण एक दशक से लंबे शासन के खिलाफ देश में अभूतपूर्व प्रदर्शन हुए।