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चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग ने पीएम मोदी को लिखा पत्र – ‘दूर के रिश्तेदार पड़ोसी की तरह अच्छे नहीं होते’

चीनी राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने हाल ही में भारत में नए कोरोना वायरस महामारी के बारे में भारतीय प्रधानमंत्री मोदी को एक संदेश भेजकर भारत को सहायता प्रदान करने की इच्छा व्यक्त की।

चीनी राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने हाल ही में भारत में नए कोरोना वायरस महामारी के बारे में भारतीय प्रधानमंत्री मोदी को एक संदेश भेजकर भारत को सहायता प्रदान करने की इच्छा व्यक्त की। उधर, भारत स्थित चीनी राजदूत सुन वेइतुंग ने भी कहा कि चीन भारत द्वारा आदेशित महामारी-रोधी सामग्रियों के उत्पादन को बढ़ाने में प्रयास कर रहा है।
पिछले कुछ हफ्तों में, भारत को विभिन्न आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति पहुंचाने के लिए दर्जनों उड़ानें चीन से भेजी गई हैं। साथ ही, चीन और भारत के विदेश मंत्रियों ने भी फोन पर बातचीत के दौरान महामारी से लड़ने में पारस्परिक सहयोग को मजबूत करने के लिए सद्भावना व्यक्त की।
कहावत है : ‘दूर के रिश्तेदार पड़ोसी की भांति अच्छे नहीं होते हैं।’ प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में, पड़ोसी अक्सर वही आदमी है जो आपकी सबसे अधिक मदद कर सकता है। भारत में महामारी की दूसरी लहर आने के बाद, चीन ने तुरंत ही विभिन्न चैनलों के माध्यम से मदद करने की इच्छा प्रकट की। भारत स्थित चीनी दूतावास के अनुसार, अप्रैल माह से चीन ने भारत को 5,000 से अधिक वेंटिलेटर, 20 हजार से अधिक ऑक्सीजन जनरेटर और 3,800 टन दवाइयां प्रदान की हैं।
लेकिन कुछ पश्चिमी देशों, जो ‘क्वाड’ की स्थापना करने के इच्छुक हैं और भारत को अपने मोर्चे में शामिल करवाने के लिए लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, ने भारत को मदद देने में ठंडी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने भारतीय यात्रियों और उड़ानों के प्रवेश को प्रतिबंध करने का तुरंत फैसला लिया, और यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया ने उन लोगों को वैधानिक दंड भी घोषित किया, जो भारत से ऑस्ट्रेलिया की यात्रा करने आए हैं, और जिनमें भारतीय मूल के ऑस्ट्रेलियाई नागरिक भी शामिल हैं। जबकि, ये देश वास्तव में ऐसे देश हैं, जिन्हें भारत ने अपने टीकों से समर्थन दिया है।
बेशक, अपने देशों में बढ़ती महामारी के कारण अमेरिका और कुछ पश्चिमी देश शायद भारत को काफी सहायता देने में असमर्थ हैं। हालांकि, पश्चिमी देशों ने बड़ी संख्या में टीके प्राप्त किए हैं, फिर भी इन देशों में हर दिन बड़ी संख्या में नए मामले सामने आ रहे हैं, और उनके सामने वायरस के उत्परिवर्तन (म्यूटेंट) का जोखिम उठाने और महामारी को फिर से नियंत्रण से बाहर होने का खतरा भी मौजूद है। इसलिए, अमेरिका और कुछ पश्चिमी देशों को, जो अभी भी खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, अपने नागरिकों की जान बचाने को प्राथमिकता देनी पड़ रही है।
इस मामले में, केवल चीन भारत की मदद कर सकता है, क्योंकि चीन के पास न केवल पर्याप्त महामारी-रोधी सामग्रियों के उत्पादन के लिए पूर्ण औद्योगिक श्रृंखला है, बल्कि चीन भी दुनिया का एकमात्र प्रमुख देश है, जिसने महामारी को नियंत्रित किया है। चीन को महामारी-रोधी और सार्वजनिक स्वास्थ्य के संदर्भ में समृद्ध अनुभव है।
ध्यान रहे कि चीन ने भारत को मदद देने के लिए कोई पूर्वशर्त नहीं रखी। इससे चीन और भारत के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का महत्व जाहिर होता है, साथ ही ‘दूर के रिश्तेदार पड़ोसी की तरह अच्छे नहीं होते’ वाली कहावत भी साबित होती है।
उधर, पड़ोसियों के बीच मदद कभी एकतरफा नहीं होती है। जब चीन भी बड़ी आपदा का सामना कर रहा था, तब उसे बाहरी दुनिया से भी मदद की आवश्यकता थी। उदाहरण के लिए, चीनी स्कूलों की पाठ्यपुस्तकों में आज भी डॉक्टर कोटनीस और इनकी भारतीय मेडिकल टीम की चीन में काम करने की कहानी शामिल है। महामारी से लड़ने के मुद्दे पर, मानव जाति एक साझा समुदाय है। दूसरों की मदद करना खुद की मदद करना ही है। जब तक भारत में महामारी पूरी तरह से नियंत्रित नहीं हो जाती है, तब तक दुनिया वास्तव में सुरक्षित नहीं हो सकेगी।
महामारी के खिलाफ मौजूदा लड़ाई मानव जाति के लिए मैराथन बन सकती है, और लगभग सभी देशों को अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। विभिन्न देशों की सरकारों को नागरिक स्वतंत्रता, सामाजिक सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के सामान्य संचालन को बनाए रखने के बीच संतुलन बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। महामारी नियंत्रण से बाहर होने का खतरा हमेशा मौजूद रहता है।
उधर, चीन वायरस के प्रति ‘शून्य सहिष्णुता’ अपनाता है। इसमें नए मामले का पता लगने के तुरंत बाद सख्त लॉकडाउन लागू करना, विशेष अस्पताल का निर्माण करना, बार-बार न्यूक्लिक एसिड परीक्षण कराना, टीकों के उत्पादन और टीकाकरण में तेजी लाना आदि शामिल हैं। सौभाग्यवश, चीन और भारत दोनों देश दुनिया में प्रमुख वैक्सीन उत्पादक हैं। दोनों देश टीकों और अन्य महामारी-रोधी सुविधाओं के उत्पादन में सहयोग कर सकते हैं, और दो एशियाई पड़ोसियों के बीच सहयोग का लाभार्थी सारी दुनिया ही होगी।

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