केंद्रीय सूचना आयोग ने सीबीआई को शराब कारोबारी विजय माल्या के ब्रिटेन से प्रत्यर्पण की प्रक्रिया पर आने वाले खर्च की जानकारी प्रदान नहीं करने की इजाजत दे दी। सीआईसी ने इसे प्रशासनिक खर्च बताया जो पारदर्शिता कानून के दायरे से बाहर है।
पुणे स्थित कार्यकर्ता विहार धुर्वे की याचिका पर फैसला करते हुए सूचना आयुक्त दिव्य प्रकाश सिन्हा ने कहा कि यह खर्च भारत सरकार द्वारा माल्या को वापस लाने के लिये किया गया।
उन्होंने कहा कि इस आरटीआई आवेदन में मांगी गई सूचना प्रशासनिक कार्रवाई और कानूनी खर्च के बारे में है जो कहीं से भी भ्रष्टाचार और मानवाधिकार के उल्लंघन के आरोपों से जुड़ी नहीं है।
सीबीआई ने दावा किया कि माल्या के खिलाफ दायर मामलों की जांच लंदन उच्च न्यायालय में महत्वपूर्ण चरण में है और इस चरण में सूचना देना जांच को बाधित करेगा इसलिये इसे आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(एच) के तहत छूट दी जानी चाहिए।
आरटीआई अधिनियम की धारा 24 सीबीआई समेत सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को पारदर्शिता कानून के दायरे से छूट देती है लेकिन अगर कोई आवेदक “भ्रष्टाचार के आरोपों” से जुड़ी ऐसी सामग्री की मांग करता है जो जांच एजेंसी के पास मौजूद है तो यह छूट लागू नहीं होगी।