डोकलाम विवाद को लेकर भारत और चीन के बीच लगातार जुबानी जंग जारी है। इस बीच चीन ने एक बार फिर से भारतीय सेना को इस इलाके से पीछे हटने के लिए कहा है। आपको बता दे कि दिल्ली स्थित चीनी दूतावास ने 15 पन्नों का बयान जारी कर भारत से अपनी सेना हटाने की बात कही है। चीन ने आरोप लगाया है कि भारत भूटान को एक बहाने के तौर पर ही इस्तेमाल कर रहा है अगर चीन और भूटान के बीच में कोई विवाद है तो दोनों देशों के बीच ही रहना चाहिए भारत का इसमें कोई रोल नहीं है।
चीन ने अपने बयान में कहा कि भारत इस मुद्दे पर एक तीसरी पार्टी के तौर पर एंट्री कर रहा है । डोकलाम के बहाने भारत जो इस मुद्दे में एंट्री कर रहा है वह सिर्फ चीन की संप्रभुता ही नहीं बल्कि भूटान की आजादी और संप्रभुता को भी चुनौती दे रहा है। चीन का यह बयान उन्हीं बयानों की तरह है। जो विवाद के बाद से ही लगातार पीएलए और विदेश मंत्रालय की ओर से दिया जा रहा था।
चीन ने कहा है कि सन 1890 के चीन-ब्रिटेन के बीच हुए समझौते के अनुसार डोकलाम चीन का इलाका है। वहां उसकी सेना गश्त लगाती रही है। चरवाहे मवेशी चराते रहे हैं। जब चीन वहां रोड बना रहा था तब 18 जून को 270 सशस्त्र भारतीय सैनिक 2 बुलडोजर लेकर चीनी सीमा के 100 मीटर अंदर तक घुस गए। वहां 3 टेंट गाड़ लिए। अब भी 40 सैनिक और एक बुलडोज़र वहां मौजूद हैं।
चीन का कहना है कि ये गंभीर मामला है और पहले से अलग है। भारत के पास ऐसा करने के लिए कोई तथ्यात्मक और कानूनी आधार नहीं है। उसने जमीन पर यथास्थिति बदलने की कोशिश की है। उसने कहा है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत लगातार सीमा पर रोड और मिलिट्री स्ट्रक्चर बना रहा है।
चीनी दूतावास की ओर से इस तरह का बयान ऐसे वक्त में आया है जबकि पूरे मामले को लेकर पिछले हफ्ते ही भारतीय एनएसए अजीत डोवाल बीजिंग में अपने समकक्ष यांग जेकी से मिले और इस संबंध में बातचीत भी हुई।
बता दें कि डोकलाम विवाद में अभी तक भूटान भारत के साथ खड़ा है। लेकिन अब चीन ने भूटान पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं। दरअसल डोकलाम में जिस जमीन पर विवाद है। वह असल में भूटान की है। जिस पर चीन सड़क बनाना चाहता है। लेकिन भारत अपनी सुरक्षा की दृष्टि से इस पर विरोध जता रहा है। चूंकि भूटान के साथ भारत के बेहद ही अच्छे संबंध हैं। इस कारण इस मुद्दे पर भारत को भूटान का पूरा समर्थन प्राप्त है।
भूटान का राजपरिवार लंबे समय से भारत समर्थक रहा है। यही कारण है कि भूटान में आज भी भारत का सबसे ज्यादा प्रभाव है। लेकिन अब साल 2008 से भूटान में राजशाही की जगह संवैधानिक राजसत्ता ने ले ली है। ऐसे में चीन की कोशिश है कि भूटान की विपक्षी पार्टी को समर्थन देकर अपने पक्ष में मिलाया जाए।