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क्या वायरस के डेल्टा स्वरूप के प्रसार की वजह है कोरोना वैक्सीन की खुराकों में अंतराल, विशेषज्ञों ने किया आगाह

कोरोना वायरस का ‘डेल्टा’ स्वरूप जो सबसे पहले भारत में पाया गया था, अब वह ब्रिटेन में संक्रमण का एक प्रमुख कारण बन रहा है।

कोरोना वायरस का ‘डेल्टा’ स्वरूप जो सबसे पहले भारत में पाया गया था, अब वह ब्रिटेन में संक्रमण का एक प्रमुख कारण बन रहा है। कुछ विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि यहां पहले कहर बरपाने वाले स्वरूप अल्फा के मुकाबले डेल्टा स्वरूप का प्रसार 100 फीसदी तक अधिक हो सकता है। लेकिन डेल्टा के हावी होने की केवल यही वजह नहीं है। वायरस के हावी होने में सक्षम स्वरूपों को एक जैविक लाभ मिलता है जो है म्यूटेशन (उत्परिवर्तन), जिसके जरिये ये स्वरूप लोगों के बीच बहुत ही आसानी से फैलते हैं।
उत्परिवर्तन के कारण कम संक्रामक स्वरूप का असर भी कम होता जाता है और अधिक संक्रामक स्वरूप हावी होते जाते हैं। हालांकि डेल्टा स्वरूप का लोगों के बीच जो असर है वह पहले के स्वरूपों के मुकाबले अधिक जटिल है लेकिन यह भी संभव है कि वायरस के इस स्वरूप के प्रसार और इसके ब्रिटेन में हावी होने के पीछे वजह केवल उसका अधिक संक्रामक होना ही नहीं हो, बल्कि सरकारी नीतियां भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकती हैं। इसके विकासमूलक परिवर्तनों के पीछे जो शक्तिशाली ताकतें हैं उनमें अंतर करके इसे समझा जा सकता है।
मसलन, पहला है प्राकृतिक चुनाव जो तब होता है जब एक प्रकार का जीव दूसरे पर पूरी तरह से हावी हो जाता है और समय बीतने के साथ एक को सफलता मिलती है जबकि दूसरा खत्म हो जाता है। इसे इस तरह समझा जा सकता है, जब एक चीता जो अधिक रफ्तार से भाग सकता है, वह अपने प्रतिद्वंद्वी को पीछे छोड़ देता है और इसलिए शिकार को पकड़ने में अधिक सक्षम होता है। इस तरह वह अपने आप को बचाने और बढ़ाने में कामयाब रहता है।
दूसरा चीता जिसकी रफ्तार कुछ कम है उसे पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता या फिर वह मादा चीता को आकर्षित नहीं कर पाता तो इसके कारण वह अपना वंश नहीं बढ़ा पाता। दूसरी ताकत है कृत्रिम चुनाव जो प्राकृतिक चुनाव का ही एक हिस्सा है। इसमें यह फैसला इंसान करता है कि कौन सा जीव बचेगा और बढ़ेगा। उदाहरण है घोड़ों का प्रजनक। इसमें प्रजनक कुशल और सक्षम घोड़ों का अन्य के साथ मेल करवाता है ताकि अगली पीढ़ी में भी वही खासियत हो जो इन घोड़ों में है।
तीसरी ताकत है अनजाने में किया गया चयन। इसमें मानव का पर्यावरण के साथ मेल होने पर दुर्घटनावश विकासमूलक प्रभाव होते हैं। यह भी प्राकृतिक चयन का हिस्सा है और दुनिया में एक महत्वपूर्ण ताकत बनता जा रहा है क्योंकि जनसंख्या बढ़ रही है और इंसान वैश्विक पर्यावरण में परिवर्तन कर रहा है। इसका एक अच्छा उदाहरण है बैक्टीरिया जो आधुनिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध उत्पन्न कर रहा है। बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं तो इस तरह हम अनजाने में ही बैक्टीरिया को हमारे उपचार के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने का मौका दे देते हैं।
एक अन्य उदाहरण हैं खेती करने के तौर तरीके जिनकी वजह से पौधों के बीच रोग फैलते हैं। लोग पेड़-पौधों को बहुत करीब रोप देते हैं जिससे उनके बीच बीमारी फैलने का खतरा अधिक रहता है। कुछ अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि 2009 में स्वाइन फ्लू और संभवत: कोविड-19 के फैलने की भी यही वजह रही। कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि पेड़ों को बहुत करीब लगाना या टीकों की खुराकों में अधिक अंतर दुनिया में कुछ बदलाव की वजह बनते हैं।
इस तरह के कई बदलाव मसलन ‘सुपर बग’ जिन पर एंटीबायोटिक बेअसर है या वायरस के नए स्वरूप हमारे लिए नुकसानदायक हो सकते हैं। यही ताकतें हैं जो डेल्टा के प्रसार में मददगार साबित हो रही हैं। डेल्टा स्वरूप की बात करें तो, यह उन लोगों को संक्रमित कर सकता है जिन्हें कोविड-19 रोधी टीके की आधी खुराक मिली है और यही वजह है कि यह हावी हो रहा है।
पब्लिक हैल्थ इंग्लैंड के मुताबिक जिन लोगों को फाइजर के टीके की दोनों खुराक मिल चुकी हैं उनका इससे बचाव 88 फीसदी तक हो सकता है लेकिन जिन्हें फाइजर या एस्ट्राजेनेका टीके की एक ही खुराक मिली है उनका केवल 33.5 तक ही बचाव हो सकेगा। विकासमूलक चयन के नजरिए से देखें तो ब्रिटेन की सरकार का टीके की पहली और दूसरी खुराक के बीच अंतराल को बढ़ाया जाना वजह है कि डेल्टा स्वरूप को लोगों को संक्रमित करने का मौका मिल गया।
इस तरह जहां डेल्टा स्वरूप भारत में प्राकृतिक चुनाव की वजह से फैला, वहीं संभवत: ब्रिटेन में इसके फैलने का कारण अनजाने में किया गया चुनाव रहा और इसी वजह से यह बना रहा और बढ़ता गया। इसके अलावा इंग्लैंड के उत्तर पश्चिम के शहर बोल्टन में जहां डेल्टा स्वरूप सबसे पहले फैला था वहां रहने की परिस्थितियां भीड़भाड़ वाली हैं। अत: ये परिस्थितियां तथा स्वयं स्वरूप का बेहद संक्रामक होना भी इसके फैलने की वजह है।

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