मेक्सिको ने भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि न्यायालय ने इस मामले के जरिये काउंसलर कानून पर अपने न्यायशास्त्र को और गहरा किया और जोर देकर कहा कि वियना संधि और काउंसलर संबंधों के तहत आने वाले नियम अनावश्यक नियम नहीं हैं जिन्हें कोई भी देश अपनी मर्जी से चुन ले या छोड़ दे।
मेक्सिको के विदेश मंत्रालय के कानूनी सलाहकार एलेजेंड्रो सिलोरियो ने अदालत के प्रधान न्यायाधीश अब्दुलकावी युसूफ द्वारा 193 सदस्यीय संरा निकाय में रिपोर्ट पेश करने के बाद बुधवार को महा सभा में कहा, “सदस्य राष्ट्र द्वारा राजनयिक और वाणिज्यिक जिम्मेदारियों को प्रभावी तरीके से पूरा करना अंतरराष्ट्रीय बहुपक्षीय प्रणाली के संचालन के लिये बेहद प्रासंगिक है।”
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सिलोरियो ने कहा कि मेक्सिको आईसीजे द्वारा जाधव मामले में 17 जुलाई को दिये गए फैसले को रेखांकित करेगा जिसमें अदालत ने कहा कि विदेशी नागरिकों को हिरासत में लिये जाने पर राजनयिक पहुंच मुहैया कराया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा, “यद्यपि जाधव मामले में, न्यायालय राजनयिक कानून के संदर्भ में अपने न्यायशास्त्र को व्यापक करने में सक्षम रहा और उसने इसे निर्बाध तरीके से लागू करने के महत्व को भी रेखांकित किया।”
उन्होंने यह भी कहा कि एक स्वस्थ और सुचारु बहुपक्षीय प्रणाली विवादों के शांतिपूर्ण तरीके से हल होने पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा, “यही वजह है कि जब बहुपक्षवाद को लागू करने की बात आती है तो आईसीजे की भूमिका महत्वपूर्ण है।” अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की रिपोर्ट पर महासभा में विदेश मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव (विधि एवं संधि) उमा सेकर ने कहा कि यह रिपोर्ट उस महत्व और भरोसे को दर्शाती है जो राष्ट्र इस अदालत में व्यक्त करते हैं।
उन्होंने कहा, “यह अदालत द्वारा सुलझाए जाने वाले मामलों की संख्या, प्रकृति और विविधता तथा सार्वजनिक अंतरराष्ट्रीय कानून के जटिल पहलुओं से निपटने की उसकी क्षमता से स्पष्ट है।” महासभा में बुधवार को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की रिपोर्ट पेश करते हुए यूसुफ ने 17 जुलाई के अपने फैसले में कहा कि संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख न्यायिक अंग ने “पाया कि पाकिस्तान ने वियना संधि के अनुच्छेद 36 के तहत अपने दायित्वों का उल्लंघन किया था और इस मामले में उचित उपाय किए जाने बाकी थे।”
आईसीजे ने इस साल जुलाई में फैसला दिया था कि पाकिस्तान जाधव की मौत की सजा पर पुनर्विचार करे। पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने ‘जासूसी और आतंकवाद’ के आरोप में भारत के सेवानिवृत्त नौसेना अधिकारी को 2017 में मौत की सजा सुनाई थी।