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भारत के अनुरोध पर भी नेपाल ने उत्तराखंड की सीमा पर ‘नो-मैन्स लैंड’ से नहीं हटाया अतिक्रमण

कई बार याद दिलाने के बावजूद नेपाली सुरक्षा एजेंसियों ने उत्तराखंड-नेपाल सीमा के संवेदनशील हिस्से नो-मैन्स लैंड से अब तक ‘अतिक्रमण’ नहीं हटाया है।

कई बार याद दिलाने के बावजूद नेपाली सुरक्षा एजेंसियों ने उत्तराखंड-नेपाल सीमा के संवेदनशील हिस्से नो-मैन्स लैंड से अब तक ‘अतिक्रमण’ नहीं हटाया है। सीमावर्ती जिले चंपावत के टनकपुर के एसडीएम हिमांशु कफाल्टिया ने गुरुवार को बताया, हमने नेपाल में अपने समकक्षों के साथ बातचीत की है और संबंधित अधिकारियों से इस अतिक्रमण को तुरंत हटाने का अनुरोध भी किया है। हमें उम्मीद है कि ‘नो मैन्स लैंड’ में 1 या 2 दिन में चीजें बदल जाएंगी। बता दें कि हाल ही में बड़ी संख्या में भारतीय आधार कार्ड रखे नेपाली नागरिकों ने सीमा पार करके भारत में घुसने की कोशिश की थी।
सीमावर्ती जिले के एसडीएम ने आगे कहा कि नेपाल की ओर से ‘नो मैन्स लैंड’ में अस्थायी निर्माण किए जाने के बारे में जानकारी मिली थी। इसके बाद मंगलवार को एसडीएम और भारतीय पुलिस अधिकारियों की टीम सीमा क्षेत्र में गई और फिर बाद में वहां संबंधित नेपाली अधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने कहा, हमने अतिक्रमण हटाने के लिए उन्हें एक दिन का समय दिया है। अब हमें बताया गया है कि संबंधित एजेंसी ने अपने ऊपर के आधिकारियों को रिपोर्ट भेज दी है। यदि वे शुक्रवार तक अतिक्रमण नहीं हटाते हैं तो हम 20 मार्च को बैठक करेंगे। 
हाल के कुछ दिनों में दोनों देशों के बीच स्थानीय सीमा को लेकर विवाद बढ़ गए हैं, इसमें भी खासतौर पर संवेदनशील उत्तराखंड-नेपाल सीमा को लेकर मामला ज्यादा बिगड़ा है। टनकपुर में विशेष रूप से नो-मैन्स लैंड के पास ब्रह्मदेव क्षेत्र को लेकर ऐसे मुद्दों को समय-समय पर उठाया गया है। दोनों देशों के बीच की सीमा के संवेदनशील हिस्सों और सीमा स्तंभों के गायब होने के कारण इन विवादों में बढ़ोतरी हुई है।
इससे पहले 2019 में नेपाल ने नए मानचित्र लाकर उत्तराखंड के सीमा क्षेत्र के भारतीय क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर अपना दावा जताया था। तब भारत ने उसके इस कदम का कड़ा विरोध किया था। सूत्रों ने कहा है कि काठमांडू में चीनी दूतावास ने भारत और नेपाल के बीच सीमा के मुद्दों से जुड़े विवादों को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इससे पहले भी भौगोलिक क्षेत्र की ऐतिहासिक सटीकता को लेकर दोनों देशों के बीच गहमागहमी हुई है लेकिन ऐसे मामलों को नई दिल्ली ने हमेशा सफलतापूर्वक हल किया है।

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