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PM ओली ने संसद भंग करने के फैसले का किया बचाव, कहा- प्रधानमंत्री नियुक्त नहीं कर सकती अदालतें

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 5 महीने के अंदर दूसरी बार प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया और अब उन्हें अपनी ही सरकार के विवादास्पद फैसले का गुरुवार को बचाव करना पड़ा।

नेपाल की सियासत लगातार नए मोड़ ले रही है, देश के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 5 महीने के अंदर दूसरी बार प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया और अब उन्हें अपनी ही सरकार के विवादास्पद फैसले का गुरुवार को बचाव करना पड़ा। अपने फैसले के समर्थन में पीएम ओली ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि प्रधानमंत्री नियुक्त करने की जिम्मेदारी न्यायपालिका के पास नहीं है क्योंकि वह राज्य के विधायी और कार्यकारी कार्य नहीं कर सकती। मीडिया की खबरों में इस बारे में बताया गया।
राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर 5 महीने में दूसरी बार 22 मई को प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया और 12 तथा 19 नवंबर को चुनाव कराने की घोषणा की। सुप्रीम कोर्ट को अपने लिखित जवाब में ओली ने कहा कि प्रधानमंत्री नियुक्त करने का कार्य न्यायपालिका का नहीं है क्योंकि वह राज्य की विधायिका और कार्यपालिका का काम नहीं करा सकती। न्यायालय ने नौ जून को प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रपति कार्यालय को कारण बताओ नोटिस जारी कर 15 दिन के भीतर जवाब देने को कहा था।
‘हिमालयन टाइम्स’ के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट को गुरुवार को अटॉर्नी जनरल के कार्यालय के जरिए ओली का जवाब मिल गया। ओली ने कहा, ‘‘अदालत का कार्य संविधान और मौजूदा कानूनों को परिभाषित करना है क्योंकि वह विधायी या कार्यकारी निकायों की भूमिका नहीं निभा सकती है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति पूरी तरह राजनीतिक और कार्यपालिका की प्रक्रिया है।’’
प्रधानमंत्री ओली प्रतिनिधि सभा में विश्वासमत हारने के बाद अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने समूचे मामले में राष्ट्रपति की भूमिका का भी बचाव करते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 76 केवल राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का अधिकार प्रदान करता है। उन्होंने कहा,‘‘अनुच्छेद 76 (5) के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि सदन में विश्वासमत जीतने या हारने की प्रक्रिया की विधायिका या न्यायपालिका द्वारा समीक्षा की जाएगी।’’
प्रतिनिधि सभा को भंग किए जाने के खिलाफ 30 से ज्यादा रिट याचिकाएं दाखिल की गयी हैं। इनमें से कुछ याचिकाएं विपक्षी गठबंधन ने भी दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई शुरू की है और 23 जून से मामले पर नियमित सुनवाई होगी।

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