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पुतिन ने यूक्रेन के कब्जे वाले इलाके में लागू किया सैन्य शासन, प्रमुखों को दी आपातकालीन शक्तियां

राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के कब्जाए गए इलाकों में सैन्य शासन की घोषणा कर दी हैं , एक समाचार एजेंसी के मुताबिक रूस ने यूक्रेन के उन इलाकों में सैन्य शासन लागू किया हैं , जिनका पुतिन ने गत दिनों रूस में विलय की घोषणा की थी।

राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के कब्जाए गए इलाकों में सैन्य शासन की घोषणा कर दी हैं, एक समाचार एजेंसी के मुताबिक रूस ने यूक्रेन के उन इलाकों में सैन्य शासन लागू किया हैं , जिनका पुतिन ने गत दिनों रूस में विलय की घोषणा की थी। राष्ट्रपति पुतिन का आदेश गुरूवार से लागू किया जाएगा। दरअसल कब्जाए गए इलाकों में अपनी सैन्य शक्ति बनाए रखने के लिए ऐसा किया हैं। पुतिन ने वंहा पर तैनात प्रमुखों को आपातकालीन शक्तियां भी दी हैं, ताकि किसी भी समय विरोध को दबाया जा सके।   
राष्ट्रपति पुतिन ने सुरक्षा परिषद की बैठक में कहा कि अगर रूस अपनी सुरक्षा व भविष्य के लिए जरूरी कदम उठा रहे हैं।  पुतिन ने आगे कहा कि वह अपनी लोगों की रक्षा के लिए बहुत कठिन चीजों को हल कर रहे हैं। राष्ट्रपति पुतिन के निर्णय पर रूस के उपरी सदन ने तुरंत प्रस्तावित कर मुहर लगा दी हैं। सैन्य प्रमुखों को अधिकांश शक्तियां देने के संबंध में पुतिन ने कहा था कि परिस्थिति वश ऐसे समय प्रमुखों को शक्तियां देना उचित हैं।  
आपको बता दे की रूस युक्रेन के कई इलाकों पर कब्जा कर चुका हैं , जिनका उसने विधिवत रूप से रूस में विलय भी कर दिया हैं। विलय वाले क्षेत्र अलगाववादी थे, जो यूक्रेन के नहीं बल्कि रूस का पक्ष अधिकांश लेते थे। रूस काफी दिनों से यूक्रेन के साथ तनाव को बनाए नहीं रखना चाहता था लेकिन नाटों की सदस्यता के चलते रूस ने यूक्रेन पर सैन्य हमला कर दिया।  युद्ध को करीब सात माह बीत चुके हैं, जिसका कोई निर्णय अभी तक किसी मंजिल तक नहीं पहुंचा हैं। 
यूरोपीय देश युक्रेन को हथियार देकर युद्ध को लंबा खींचने में निभा रहे भूमिका 
युक्रेन ृरूस के सैन्य स्थिति में कही पर भी नहीं टिकता हैं , लेकिन नाटो सदस्य देशों के हथियार आपूर्ति के चलते युद्ध युक्रेन रूस का मुकाबला कर रहा हैं , अमेरिका रूस का धुरविरोधी होने के कारण पिनाका जैसे मॉडयूल हथियार युक्रेन  को दे रहा हैं ताकि युक्रेन आत्मसमर्पण ना करे। यही कारण युक्रेन ने अभी तक रूस के सामने अपने घुटने नहीं टेके हैं । अन्यथा बाहरी देशों की मदद ना मिलने पर दोनों देशों के बीच शांति संधि वार्ता भी हो सकती थी। 

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