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ड्रैगन याद करे वो मंजर, जब जापानी सैनिकों ने चीन में घुसकर मचाई थी तबाही

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वर्तमान भारत-चीन विवाद में दोनों ही तरफ से कोई पीछे हटने को तैयार नहीं है। चीन अपने अंदाज में लगातार धमकियां दे रहा है। भारत की तरफ से भी चीन को हर बार प्रतिरोधी निगाहों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन चीन के साथ उसके पड़ोसी देशों के संबंधों पर निगाह डालें तो हम पाएंगे कि उसके 18 पड़ोसी हैं और सभी के साथ उसके संबंध खराब ही हैं।

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वैश्विक ताकत बनने के साथ ही चीन के स्वभाव में हेकड़ी अपने आप आती चली गई. वो अपने पड़ोसियों से धमकाने वाली मुद्रा में ही बात करता रहा है. लेकिन चीन के साथ ऐसा भी हुआ है जब उसके महत्वपूर्ण शहर शंघाई में दुश्मन देश की सेना घुस गई थी और चीन के पास सिवाय बेचारगी के कुछ भी नहीं था। चीन सीजफायर की माफी मांग रहा था और दुश्मन देश उस पर गोलियां बरसा रहा था।

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बात जनवरी, 1932 की है। चीन और जापान के बीच तनातनी चल रही थी। 1931 के सितंबर महीने में चीनी इलाके मुकडेन (वर्तमान शेनयांग) के पास एक रेलवे ट्रैक के नीचे बेहद कमजोर बम धमाका हुआ। ये बम इतना कमजोर था कि जिस पटरी के नीचे इसे रखा गया था उस पर जरा भी इसका प्रभाव नहीं पड़ा लेकिन इस रेलवे लाइन का मालिक जापान था।

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इस घटना से गुस्साए जापान ने चीनी विद्रोहियों के खिलाफ भयानक कार्रवाई की, और फिर चीन के मुकडेन इलाके पर कब्जा कर लिया।ऐसा भी कहा जाता है कि इस घटना के पीछे जापान का ही हाथ था। वह चाहता था कि मुकडेन पर पूरी तरह से आधिपत्य जमा लिया जाए लेकिन उसे कोई रास्ता नही सूझ रहा था। अंत में उसने ये षड्यंत्र रचा।

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इसके कुछ ही महीनों बाद यानी 18 जनवरी 1932 को शंघाई मे कुछ जापानी बौद्ध भिक्षुओं को चीनी लोगों ने बुरी तरह से पीट दिया। इसमें दो बुरी तरह घायल हो गए और एक की मौत हो गई। दरअसल मुकडेन की घटना के बाद चीनी लोगों में जापान के प्रति गुस्सा भर गया था। ये गुस्सा पहले चीन-जापान युद्ध में जापान के हाथों मिली हार की वजह से भी था।

बौद्ध भिक्षुओं को पीटे जाने की घटना का तो जैसे जापान इंतजार ही कर रहा था. हफ्ते भर के भीतर जापानी सैनिकों ने शंघाई शहर के आस-पास बड़ी संख्या में डेरा डाल दिया। उधर चीनी लोग भी जापान का जबरदस्त तरीके से विरोध कर रहे थे। शंघाई के लोगों ने जापान में बनी वस्तुओं का बॉयकॉट कर दिया।

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27 जनवरी को जापानी सैनिकों से शंघाई के मुंसिपल कॉरपोरेशन को चेतावनी दी कि वो बौद्ध भिक्षुओं के मामले की लिखित भर्त्सना करे और इस घटना में अगर किसी भी बौद्ध इमारत को नुकसान हुआ हो तो उसके लिए मुआवजा दे।

28 जनवरी की दोपहर तक शंघाई मुंसिपल कॉरपोरेशन इसके लिए तैयार हो गया था. लेकिन जापान को तो शंघाई के साथ कुछ और ही करना था। उसे शंघाई पर अधिकार करना था। ये सारी घटनाएं तो काफी हद तक सिर्फ एक दिखावा थीं।

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रात 12 बजे शंघाई शहर पर जापानी लड़ाकू विमानों ने भयंकर बमबारी शुरू की. ये पूर्वी एशिया में किसी हवाई हमले की पहली कार्रवाई थी। इसके पहले हवाई हमले की किसी घटना का पूर्वी एशिया में कोई जिक्र नहीं मिलता है. जापानी सैनिकों ने भी हमला बोल दिया।

तकरीबन एक महीने जापानी हमलों के कहर का शिकार शंघाई और उसके आस-पास के इलाके होते रहे। चीन की सेना ने जापानी की तरफ खूब मुकाबला किया लेकिन उसकी स्थिति जापान के सामने बेहद कमजोर थी. करीब एक महीने बाद 1 मार्च को चीनी सेनाओं ने युद्ध से खुद को वापस खींच लिया और युद्ध की समाप्ति जापान की जीत के साथ हुई।

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इसके बाद युनाइटेड नेशंस के प्रयासों से दोनों देशों के बीच समझौता हुआ जिसके लिए जापान तैयार नहीं हो रहा था। जापान इतना आक्रामक था चीन के सीजफायर के बाद भी कई जगहों पर हमलों की घटना हुई। चीन उस समय जापान के सामने बेहद निरीह स्थिति में खड़ा था। आखिरकार 5 मई को युनाइटेड नेशंस की मध्यस्थता के बाद दोनो देशों के बीच शंघाई सीजफायर एग्रीमेंट हुआ।

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