अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान के कब्जा कर लेने के बाद से पाकिस्तान पूरी तरह से तालिबान सरकार के समर्थन में दिखाई दे रहा था। पश्चिमी समर्थित अफगान सरकार के पतन को दोनों देशों के बीच संबंधों को फिर से स्थापित करने के अवसर के रूप में देखा गया, जो अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी के तहत तनावपूर्ण हो गए थे। तालिबान सरकार के गठन के बाद, इस्लामाबाद अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर इसके मुख्य समर्थकों में से एक बन गया। हाल के महीनों में हालांकि, दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों में दरार के संकेत सामने आए हैं।
जानें किन मुद्दों पर अफगान-PAK रिश्तों में आई कड़वाहट
अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा के सीमांकन पर असहमति और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के लिए अफगान तालिबान के समर्थन ने तनाव पैदा कर दिया है। यदि इन मुद्दों पर कोई समाधान नहीं होता है, तो यह पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता दोनों के लिए महत्वपूर्ण परिणामों के साथ संबंधों में दरार पैदा कर सकता है। इसी कड़ी में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच खैबर पख्तूनख्वा में हुई फायरिंग में पाक के 5 सैनिकों की जान चली गई। इस पर बौखलाए हुए पाकिस्तान ने अजगनिस्तान की तालिबान सरकार को आतंकवाद के लिए अपनी जमीं का इस्तेमाल बंद करने की चेतावनी दे दी।
तालिबान को आतंकवाद के लिए जमीन का इस्तेमाल न करने की दी चेतावनी
पाकिस्तानी सेना के इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया है, ‘अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अफगानिस्तान के अंदर से आतंकवादियों ने कुर्रम जिले में पाकिस्तानी सैनिकों पर गोलियां चलाईं।’ बता दें कि यह पहला मौका नहीं है जब अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान का सब्र का बाण टुटा हो, इससे पहले भी दिसंबर के अंत और जनवरी की शुरुआत में यह स्पष्ट हो गया था कि दोनों देशों में संबंधों में कड़वाहट आ गई है। दरअसल, अफगान सीमा प्रहरियों ने पाकिस्तानी श्रमिकों को दोनों देशों के बीच सीमा पर बाड़ लगाने से रोकने के लिए मजबूर किया था।
TTP ने ली खैबर पख्तूनख्वा में हुए हमले की जिम्मेदारी
बताते चलें कि तालिबान सरकार अब तक पाकिस्तान को किये वादे को पूरा करने में चुकी है कि अफगान की जमीन का इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ नहीं किया जायेगा। पाकिस्तान की सेना का कहना है कि तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से ये अफगानिस्तान की जमीन से किया गया दूसरा हमला है, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) द्वारा इस हमले की जवाबदेही ली गई है। तालिबान सरकार ने पाकिस्तान और टीटीपी के बीच शांति समझौते की पेशकश की थी। हालांकि, शांति वार्ता में कोई प्रगति नहीं हो सकी जिसके बाद संघर्ष विराम समाप्त हो गया। तभी से टिटिटपि ने पाकिस्तान पर हमले तेज कर दिए हैं।