विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सिंगापुर में आयोजित ‘ब्लूमबर्ग न्यू इकोनॉमिक फोरम’ में ‘ग्रेटर पावर कॉम्पीटीशन: द इमर्जिंग वर्ल्ड ऑर्डर’ कार्यक्रम में कहा है कि, अमेरिका आज एक कहीं अधिक लचीला साझेदार है और वह अतीत की तुलना में विचारों, सुझावों और कार्य व्यवस्थाओं का अधिक स्वागत करता है। जयशंकर ने उस धारणा को ‘‘हास्यास्पद’’ करार देते हुए खारिज कर दिया कि, अमेरिका रणनीतिक रूप से सिकुड़ रहा है और शक्ति के वैश्विक पुनर्संतुलन के बीच अन्यों के लिए स्थान बना रहा है। उन्होंने सत्र के मध्यस्थ के एक प्रश्न के उत्तर में कहा, इसे अमेरिका का कमजोर होना नहीं समझें। मुझे लगता है कि ऐसा सोचना हास्यास्पद है। इस सत्र में अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने भी भाग लिया।
1992 के बाद से बदल रही है दुनिया
जयशंकर ने चीन पर निशाना साधते हुए कहा की, वह अपना विस्तार कर रहा है, लेकिन चीन की प्रकृति, जिस तरीके से उसका प्रभाव बढ़ रहा है, वह बहुत अलग है और हमारे सामने ऐसी स्थिति नहीं है, जहां चीन अनिवार्य रूप से अमेरिका का स्थान ले ले। चीन और अमेरिका के बारे में सोचना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा, सच्चाई यह है कि, भारत समेत अन्य भी कई देश हैं, जो परिदृश्य में अधिक भूमिका निभा रहे हैं। दुनिया में पुनर्संतुलन है। उन्होंने ने कहा, आप कह सकते हैं कि हम एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं, जहां 1992 के बाद से वास्तव में बदलाव आ रहा है, दुनिया बदल रही है। यह अचानक से अब एकध्रुवीय नहीं है। उन्होंने कहा, हम देशों के साथ काम करने की स्थिति को बदलने के मामले में बहुत कुछ कर रहे हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर अब बदल गई है अवधारणा
विदेश मंत्री ने कहा, कोविड-19 ने वैश्वीकरण के पुराने मॉडल पर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। इस अत्यंत जटिल परिवर्तनकारी दौर के वास्तव में कई चरण हैं। इस दौर में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर अब अवधारणा बदल गई है। उन्होंने कहा, हम आर्थिक सुरक्षा, स्वास्थ्य संबंधी सुरक्षा और डिजिटल सुरक्षा के बारे में कहीं अधिक सोचते हैं। विदेश मंत्री ने कहा, आज डेटा पर निर्भर दुनिया में विश्वास और पारदर्शिता कहीं अधिक प्रासंगिक मामले हैं। इसलिए मेरे लिए यह मायने रखता है कि, मेरे साझेदार का चरित्र कैसा है, वे किसके साझेदार हैं। ये सभी नए कारक हैं और मेरा मानना है कि, ये दुनिया को एक बहुत अलग दिशा में ले जा रहे हैं। जयशंकर ने कहा कि, निस्संदेह भारत यह देखना चाहेगा कि उसके हित कैसे पूरे होते हैं और आज ये हित निश्चित ही अमेरिका, यूरोप और ब्रिटेन के साथ अधिक निकट संबंधों से पूरे होते हैं।