विशेषज्ञों का मनाना है कि श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ‘‘अमेरिकी परिसीमा’’ के भीतर ही काम करेंगे लेकिन भारत के साथ करीबी संबंध बनाए रखेंगे और नकदी संपन्न चीन से संबंधों में अधिक सतर्कता बरतेंगे।
राजपक्षे ने रविवार को अपने करीबी प्रतिद्वंद्वी सजीत प्रेमदास को करीब 13 लाख मतों से हराया। उन्हें कुल 52.25 फीसदी मत मिले जबकि प्रेमदास के खाते में 41.99 मत आए।
गृह युद्ध के दौरान विवादित रक्षा सचिव रहे 70 वर्षीय राजपक्षे की जीत भारत के लिए विशेष मायने रखती है क्योंकि भारत को उम्मीद है कि कोलंबो का नया प्रशासन द्विपीय देश में नयी दिल्ली के रणनीतिक हितों के विरुद्ध विदेशी शक्ति को अनुमति नहीं देगा।
दशकों तक श्रीलंका के वैश्विक शक्तियों से राजनयिक संबंधों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों को भरोसा है कि गोटबाया क्षेत्र में अमेरिकी हितों के अधिक खिलाफ कोई नीति नहीं अपनाएंगे।
स्वतंत्र थिंक टैंक नेशनल पीस काउंसिल के कार्यकारी निदेशक जेहन परेरा ने कहा, ‘‘गोटबाया अमेरिकी परिसीमा में ही काम करेंगे। इसका मतलब यह है कि वह ऐसी कोई नीति नहीं अपनाएंगे जो क्षेत्र में अमेरिकी हितों के बहुत खिलाफ हो। इसका मतलब होगा कि वह न तो बहुत अधिक चीन समर्थक और न तो बहुत अधिक भारत विरोधी दिखेंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि वह नरेंद्र मोदी से मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखेंगे और यहां तक कि मोदी मॉडल का अनुसरण श्रीलंका में करने की कोशिश करेंगे जिसमें अपने मत आधार को बनाए रखने के लिए अन्य मुद्दों से निपटते वक्त राष्ट्रवाद समर्थक रुख रखेंगे।’’
उल्लेखनीय है कि रविवार को गोटबाया के जीतने के कुछ घंटों के भीतर प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें टेलीफोन किया और बधाई संदेश दिया जिसके जवाब में गोटबाया ने भी धन्यवाद दिया और ऐतिहासिक जुड़ाव को रेखांकित किया।
अधिकतर विशेषज्ञों को विश्वास है कि गोटबाया मोदी के निमंत्रण को सम्मान देने के लिए अपने पहले विदेश दौरे पर भारत अवश्य जाएंगे।
परेरा ने कहा कि गोटबाया दोहरी नागरिकता के आरोपों का सामना कर रहे थे तब अमेरिका का झुकाव उनकी ओर दिखा था।
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि गोटबाया के नेतृत्व में श्रीलंका अपने सबसे बड़े कर्जदाता चीन से संबध बढ़ाएगा एवं कारोबार करेगा।
उल्लेखनीय है कि राजपक्षे के भाई महिंदा राजपक्षे जब श्रीलंका के राष्ट्रपति थे तब चीन ने श्रीलंका की आधारभूत संरचना परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर निवेश किया था। यह निवेश तब हुआ जब श्रीलंका लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) से जारी गृहयुद्ध को निर्मम तरीके से कुचलने की वजह से अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग पड़ गया था।
आलोचकों का कहना है कि महिंदा की वजह से देश ‘चीनी कर्ज जाल’ में फंसा और चीन की ओर से विकसित हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए चीन को पट्टे पर देना पड़ा।
एक अन्य स्वतंत्र थिंक टैंक ‘ सेंटर फॉर पॉलिसी ऑल्टर्नेटिव्स’ के कार्यकारी निदेशक पैकियासोती सरवनमुत्तू ने इन आरोपों को खारिज कर दिया कि गोटबाया उनलोगों में हैं जिनका चीन के प्रति झुकाव है।
उनका मानना है कि गोटबाया शपथग्रहण के दौरान दिए गए भाषण के अनुरूप कार्य करेंगे जिसमें उन्होंने कहा था, ‘‘ हम अंतरराष्ट्रीय संबंध में तटस्थ रहना चाहते हैं और विश्व शक्तियों के बीच संघर्ष से अलग रहेंगे।’’
सरवनमुत्तू ने कहा, ‘‘ वह तकनीकी विशेषज्ञ हैं, न कि नेता। इसलिए वह चीन पर निर्भरता को लेकर कोई रुख नहीं अपनाएंगे। वह भारत के साथ संबंधों को सुधारना चाहते हैं।’’