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वो शख्स जिसकी सूझबूझ ने दुनिया को महाविध्वंस से बचाया था !

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कुछ लोगों  का जन्म ही इस धरती पर इसलिए होता है ताकि वो इस खूबसूरत दुनिया में कुछ अच्छे काम कर जाएं। ऐसे ही एक शख्स थे स्टनिसल्व पेट्रोव।  34 साल पहले इस शख्स की सूझबूझ से बची थी दुनिया। साल 1983 में 26 सितंबर को उन्होंने कुछ ऐसा किया था जिससे अमेरिका और सोवियत संघ के बीच वर्ल्ड वॉर होने से बच गया। इसके बाद उन्हें ‘मैन हू सेव्ड द वर्ल्ड’ भी कहा जाने लगा।  77 की उम्र में निधन हुआ । जानें- कौन थे स्टानिसल्व पेट्रोव और उन्होंने ऐसा क्या किया था।

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26 सितंबर 1983 को पेट्रोव सोवियत संघ के सीक्रेट कमांड सेंटर में ड्यूटी पर तैनात थे। इस सीक्रेट कमांड सेंटर का काम था अमेरिका की तरफ से रूस पर छोड़े जाने वाली मिसाइल का पता लगाना। वहां एक बड़ी स्क्रीन थी, जो रूस पर मिसाइल से हमला होने पर सबसे पहले सावधान करती थी। उस रात उस स्क्रीन पर कुछ अक्षर उभरे जिसका संकेत था कि अमेरिका ने रूस पर एक मिसाइल छोड़ दी है। एक-एक कर ऐसी 5 मिसाइल छोड़ने की वॉर्निंग स्क्रीन पर आई। इसके बाद पेट्रोव कुछ सेकंड तक अपनी कुर्सी पर ही बैठे रहे।

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यह देखकर पेट्रोव हैरान रह गए। उन्हें इस बात की जानकारी अपने सीनियर अधिकारियों को देनी थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। पेट्रोव को महसूस हो रहा था कि कुछ तो गड़बड़ है और जरूर कोई चूक हुई है। अमेरिका इस तरह रूस पर हमला नहीं करेगा। इसी कारण पेट्रोव ने अपने सीनियर अधिकारियों को इस बात की जानकारी नहीं दी। उनके पास हमला करने के लिए केवल 30 मिनट का समय था।पेट्रोव के पास दो रास्ते थे कि वो या तो अपने सीनियर अधिकारियों को इस बात की जानकारी दें कि अमेरिका ने उन पर हमला कर दिया है या फिर वो इस बात को समझें कि इस वॉर्निंग सिस्टम में कुछ खामी है और वो गलत जानकारी दे रहा है। पेट्रोव ने दूसरा रास्ता चुना।

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इसके बाद पेट्रोव ने सैटेलाइट रेडार ऑपरेटर्स के एक ग्रुप को फोन किया लेकिन उनके पास मिसाइल हमले की कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन हमले का फैसला तो स्क्रीन की वॉर्निंग के आधार पर होना था। पेट्रोव ने अपना फैसला लिया और सोवियत सेना के मुख्यालय में फोन कर कहा, कि अर्ली वॉर्निंग रेडार सिस्टम में गड़बड़ी है। पेट्रोव का यह फैसला सही साबित हुआ। अर्ली वॉर्निंग रेडार सिस्टम ने गलत जानकारी दी थी। बाद में इस मामले की जांच हुई तो पता चला कि सूरज की जो किरणें बादलों पर चमक रही थीं। उन्हें रॉकेट इंजन समझ लिया था।

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रेडार सिस्टम की चेतावनी पर सोवियत सरकार क्या फैसला लेती, ये लगभग पक्का था। ऐसा होता, तो विश्व युद्ध छिड़ता जो कि सामान्य नहीं होता बल्कि परमाणु युद्ध होता। विश्व की दो सबसे बड़ी महाशक्तियां एक-दूसरे को मिटाने में लग जातीं। ऐसा होता, तो बाकी देशों को भी खेमा चुनना होता, लेकिन यह सब होने से बच पाया तो केवल पेट्रोव के कारण।

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साल 2014 की पेट्रोव पर एक शॉर्ट फिल्म ‘द मैन हू सेव्ड द वर्ल्ड’ रिलीज हुई थी, जिसमें उन्होंने कहा कि हम कभी परमाणु युद्ध की संभावना तक नहीं पहुंचे थे। ना तो इस घड़ी के पहले और ना ही इसके बाद। मैं कोई हीरो नहीं हूं और ना ही मैंने कोई अद्भुत काम किया है। मैं तो बस अपना फर्ज पूरा कर रहा था, यही मेरा काम था।

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बीबीसी रशियन सर्विस को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि जब मैंने पहली बार अलर्ट देखा, तो अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। सिस्टम दिखा रहा था कि अमेरिका ने रूस पर मिसाइल छोड़ दी है। अब मेरे सामने दो सवाल थे- जो दिख रहा है, क्या वो सही है? या फिर ये कंप्यूटर की गलती से हुआ है? फिर एक बार जोर से सायरन बजा। मेरी आरामकुर्सी मानो गर्म फ्राइंग पैन में तब्दील हो गई थी। मैं इतना नर्वस था कि लगा अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो सकूंगा।

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यह बात सालों तक सामने नहीं आई. 1984 में पेट्रोव को समय से काफी पहले रिटायरमेंट लेना पड़ा। इसकी जानकारी पब्लिक नहीं हुई। सोवियत के विघटन के काफी बाद 1998 में पेट्रोव और 26 सितंबर का वो मामला दुनिया के सामने आया. इसके बाद उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले। संयुक्त राष्ट्र ने भी उन्हें शांति पुरस्कार से नवाजा।

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बता दें कि 19 मई, 2017 को पेट्रोव मौत हो गई लेकिन इसकी जानकारी 18 सितंबर को दुनिया को मिली। 7 सितंबर को पेट्रोव के जन्मदिन पर जर्मन फिल्ममेकर कार्ल शूमाकर ने उन्हें फोन किया तब पेट्रोव के बेटे दिमित्री पेट्रोव ने उन्हें बताया कि 19 मई को उनके पिता की मौत हो गई थी। बता दें कि उनका जन्म 7 सितंबर 1939 को हुआ था।

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