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अफगानिस्तान की पहली गैर मुस्लिम सांसद का छलका दर्द- अपने वतन की मुट्ठीभर मिट्टी भी न ला सके

अफगानिस्तान की पहली गैर मुस्लिम महिला सांसद अनारकली कौर होनरयार ने कभी सोचा तक नहीं होगा कि उन्हें अपना वतन छोड़ना पड़ेगा। मगर तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद उन्हें उड़ान में सवार होने से पहले अपने वतन की याद के तौर पर मुट्ठीभर मिट्टी तक रखने का मौका नहीं मिला

अफगानिस्तान की पहली गैर मुस्लिम महिला सांसद अनारकली कौर होनरयार ने कभी सोचा तक नहीं होगा कि उन्हें अपना वतन छोड़ना पड़ेगा। मगर तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद उन्हें उड़ान में सवार होने से पहले अपने वतन की याद के तौर पर मुट्ठीभर मिट्टी तक रखने का मौका नहीं मिला। 
36 वर्षीय होनरयार पेशे से दंत चिकित्सक हैं और अफगानिस्तान के अत्यधिक पुरुषवादी समाज में महिलाओं के हितों की हिमायती रही हैं और उन्होंने कमजोर समुदायों के अधिकारों के लिए कई अभियानों की अगुवाई की है। उनका प्रगतिशील एवं लोकतांत्रिक अफगानिस्तान में जीने का सपना था। उन्होंने कहा, “ मेरा ख्वाब चकनाचूर हो गया है।” 
होनरयार अब भी उम्मीद करती हैं कि अफगानिस्तान को एक ऐसी सरकार मिले जो पिछले 20 सालों में हासिल हुए लाभ की रक्षा करे। ‘शायद इसकी संभावना कम है लेकिन हमारे पास अब भी वक्त है।’अफगानिस्तान में शत्रुता की वजह से सिख सांसद के रिश्तेदारों को पहले भारत, यूरोप और कनाडा जाने के लिए मजबूर होना पड़ा था। 
तालिबान की वापसी के बाद अपने देश में बिगड़ते हालात के बीच होनरयार और उनका परिवार रविवार सुबह भारतीय वायुसेना के सी-17 परिवहन विमान से भारत पहुंचा। वह हवाई अड्डे पर यह सोचकर भावुक हो गईं कि क्या वह कभी अपने वतन लौट पाएंगी ? 
होनरयार ने नम आंखों से पीटीआई-भाषा से कहा, “मुझे याद के तौर पर अपने देश की एक मुट्ठी मिट्टी लेने का भी वक्त नहीं मिला। मैं विमान में चढ़ने से पहले हवाई अड्डे पर जमीन को सिर्फ छू सकी।” वह दिल्ली के एक होटल मे ठहरी हैं और उनकी बीमार मां वापस काबुल जाना चाहती हैं। 
होनरयार ने कहा, “ मुझे नहीं मालूम कि मैं उनसे क्या कहूं।” मई 2009 में, रेडियो फ्री यूरोप के अफगान चैप्टर ने होनरयार को ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ के रूप में चुना था। इस सम्मान ने उन्हें काबुल में घर-घर में पहचान दिलाई थी। सांसद ने अपने उन दिनों को याद किया जब वह अफगान मानवाधिकार आयोग के लिए काम करती थीं और मुल्क के दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में जाती थीं। 
उन्होंने कहा, “एक ही मजहब के न होने के बावजूद मुस्लिम महिलाओं ने मुझपर भरोसा किया।” युद्धग्रस्त देश में फंसे उनके दोस्तों और सहकर्मियों के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, “हमने ऐसे हालात से बचने की बहुत कोशिश की जिसमें हमें अपना देश छोड़ना पड़े।”
उन्होंने कहा, “मेरे सहकर्मी और मेरे दोस्त मुझे कॉल कर रहे हैं, संदेश भेज रहे हैं। लेकिन मैं कैसे जवाब दूं? हर कॉल, हर संदेश मेरा दिल तोड़ देता है, मुझे रुला देता है। उन्हें लगता है कि मैं दिल्ली में सुरक्षित और आराम से हूं, लेकिन मैं उन्हें कैसे बताऊं कि मैं उन्हें बहुत याद करती हूं।” 
होनरयार ने बताया, “ अफगानिस्तान में जब मैं बैठक से बाहर आती थी तो लोग मेरे इर्द-गिर्द इकट्ठा हो जाते थे और मेरे साथ सेल्फी लेते थे। वे मुझसे प्यार करते थे क्योंकि मैं नेशनल असेंबली में उनकी आवाज थी। मैंने सबके लिए लड़ाई लड़ी। मेरे द्वारा उठाए गए मुद्दे, मेरे सभी भाषण, असेंबली के रिकॉर्ड का हिस्सा हैं।” 
उन्होंने कहा, “मैंने तालिबान के खिलाफ बहुत कुछ कहा है। मेरे विचार और सिद्धांत बिल्कुल विपरीत हैं। मैं जीवित और आशान्वित हूं। मैं दिल्ली से अफगानिस्तान के लिए काम करना जारी रखूंगी।” 
होनरयार को लगता है कि अफगानिस्तान के लोगों का भविष्य अनिश्चय से घिरा है। एक सवाल जो उन्हें सबसे ज्यादा परेशान करता है वह है तालिबान शासन में महिलाओं का भविष्य। 
उन्होंने कहा, “तालिबान ने कहा कि किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। लेकिन शांति का मतलब अहिंसा नहीं है। अमन का अर्थ है कि वे महिलाओं को समान रूप से स्वीकार करें और उनके अधिकारों को मानें।” 

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