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ये है मुर्दों का शहर ! यहाँ जाने वाला कभी लौट कर वापिस नहीं आता

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आज हम आपको बताने जा रहे है एक ऐसी जगह ! जिसे कहा जाता है मौत का शहर , बता दे कि यहाँ जाने वाला कभी लौट कर वापिस नहीं आता है !! जी हाँ ,ये सुनकर आपको यकीन तो हो नहीं रहा होगा पर ये सच है। जैसे कि आप सभी जानते है कि ये दुनिया रहस्यमयी चीजों और जगहों से भरी पडी है। इनमें से कई जगहों के रहस्यों को वैज्ञानिक आज तक जरा भी सुलझा नहीं पाये हैं। जबकि कई जगहों के रहस्यों को आंशिक रूप से सुलझा सके है।

Doordas Village

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हालांकि अंतिम नतीजे पर पहुँचने के लिए अभी रिसर्च जारी है। ऐसे ही इस पृथ्वी पर एक ऐसी जगह है जहां आज तक जो भी गया है वो वापस लौटकर नहीं आया है। इसे मुर्दों का शहर भी कहा जाता है। हालांकि ये जगह देखने में किसी स्वर्ग से कम नहीं है लेकिन इसके अंदर की हकीकत को जानकर यहाँ कोई नहीं आता।

Doordas Village6

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आपको बता दे कि रूस के उत्तरी ओसेटिया के सुदूर वीरान इलाके में स्थित है। दर्गाव्स गांव जिस जगह को ‘सिटी ऑफ द डेड’ यानी ‘मुर्दों के शहर’ के नाम से जाना जाता है। रूस के उत्तरी ओस्सेटिया में स्थित दर्गाव्स में सिर्फ मरे हुए लोग रहते हैं। यहां पर अनगिनत झोपड़ियां हैं। वैसे यह गांव बहुत ही सुंदर है लेकिन लोग डर के मारे यहां जाना पसंद नहीं करते। कहा जाता है कि यहां के लोग अपने रिश्तेदारों के मृत शरीर को झोपड़ियों में रखते हैं।

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बता दे कि यह जगह पांच ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच छिपी हुई है। यहां पर सफेद पत्थरों से बनी अनगिनत तहखाना नुमा इमारते हैं। इनमे से कुछ तो 4 मंजिला ऊंची भी हैं। यहां के हर घरों पर मृत शरीर को दफनाया गया है। जो इमारत जीतनी ऊंची हैं, उसमें उतने ही ज्यादा शव हैं । गांव में करीब 99 घर हैं जो सभी घरों में मृत शरीर को दफनाया गया है। स्थानीय लोगों का मानना है कि जो लोग इन घरों में एक बार वह वापिस नहीं आता। इसके अलावा मौसम के कारण भी यहां आना थोड़ा मुश्किल है।

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इस तरह से हर मकान एक कब्र है और हर कब्र में अनेक लोगों के शव दफनाए हुए हैं। ये सभी कब्र तकरीबन 16वीं शताब्दी से संबंधित हैं. इस तरह से हम कह सकते हैं कि यह जगह 16वीं शताब्दी का एक विशाल कब्रिस्तान है, जहां पर आज भी उस समय से संबंधित लोगों के शव दफन है।

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इस जगह को लेकर स्थानीय लोगों की तरह-तरह की मान्यताएं भी हैं। लोगों का मानना है कि पहाड़ियों पर मौजूद इन इमारतों में जाने वाला लौटकर नहीं आता। शायद इसी सोच के चलते, यहां मुश्किल से ही कभी कोई ट्युरिस्ट पहुंचता है। हालांकि, यहां तक पहुंचने का रास्ता भी आसान नहीं है। पहाड़ियों के बीच सकरे रास्तों से होकर यहां तक पहुंचने में तीन घंटे का वक्त लगता है। यहां का मौसम भी सफर में एक बहुत बड़ी रुकावट है।

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यहां के बारे में वैसे तो और भी कई मान्यताएं प्रचलित है, लोगों का मानना है की 18वीं सदी में यहां रहने वाले लोग अपने परिवार के बीमार सदस्यों को इन घरों में रखते थे, उन्हें यहीं पर खाना तथा और जरूरत की चीजें देते थे लेकिन उनको बाहर जाने की इजाजत नहीं दी जाती थी उनकी मृत्यु होने तक।

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इस जगह में पुरातत्वविदों की बहुत रूचि रही है और उन्होंने इस जगह को लेकर कुछ असामान्य खोजें भी की हैं। पुरातत्वविदों को यहां कब्रों के पास नावें मिली हैं। उनका कहना है कि यहां शवों को लकड़ी के ढांचे में दफनाया गया था, जिसका आकार नाव के जैसा है।

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हालांकि, ये अभी रहस्य ही बना हुआ है कि आस-पास नदी मौजूद ना होने के बावजूद यहां तक नाव कैसे पहुंचीं। नाव के पीछे मान्यता ये है कि आत्मा को स्वर्ग तक पहुंचने के लिए नदी पार करनी होती है, इसलिए उसे नाव पर रखकर दफनाया जाता है।

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यहां पुरातत्वविदों को हर तहखाने के सामने कुआं भी मिला। इन कुओं को लेकर ये कहा जाता है कि अपने परिजनों के शवों को दफनाने के बाद लोग कुएं में सिक्का फेंकते थे। अगर सिक्का तल में मौजूद पत्थरों से टकराता, तो इसका मतलब ये होता था कि आत्मा स्वर्ग तक पहुंच गई।

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