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संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी- सार्वभौमिक गरीबी की दहलीज पर खड़ा है अफगानिस्तान, तत्काल कदम उठाने की जरुरत

संयुक्त राष्ट्र की विकास एजेंसी ने कहा है कि अफगानिस्तान ”सार्वभौमिक गरीबी” के कगार पर खड़ा है। ऐसे में, यदि स्थानीय समुदायों और उनकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो अगले साल के मध्य में यह अनुमान हकीकत में तब्दील हो सकता है।

संयुक्त राष्ट्र की विकास एजेंसी ने कहा है कि अफगानिस्तान ”सार्वभौमिक गरीबी” के कगार पर खड़ा है। ऐसे में, यदि स्थानीय समुदायों और उनकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो अगले साल के मध्य में यह अनुमान हकीकत में तब्दील हो सकता है। एजेंसी ने कहा कि अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के बाद 20 साल में हासिल की गई आर्थिक प्रगति जोखिम में पड़ गई है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर तालिबान के काबिज होने के बाद चार परिदृश्यों को रेखांकित किया है। इनमें जून 2022 से शुरू होने वाले अगले वित्तीय वर्ष में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 3.6 प्रतिशत से 13.2 प्रतिशत के बीच गिरावट होने का अनुमान शामिल है। हालांकि यह संकट की गंभीरता और इस बात पर निर्भर करेगा कि विश्व तालिबान से कितना संबंध रखता है।
अफगानिस्तान में अशरफ गनी की सरकार के पतन से पहले जीडीपी में 4 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा था, ऐसे में संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की यह भविष्यवाणी उस पहलू के विपरीत है। यूएनडीपी एशिया-प्रशांत की निदेशक कन्नी विंगराज ने बृहस्पतिवार को संवाददाता सम्मेलन में 28 पृष्ठों का आकलन जारी करते हुए कहा, ”अगले साल के मध्य तक अफगानिस्तान के सार्वभौगिक गरीबी के दुष्च्रक में फंसने की बहुत अधिक आशंका है। हम उसी ओर बढ़ रहे हैं। अफगानिस्तान में गरीबी दर 97-98 प्रतिशत तक पहुंचने की आशंका है।”
विंगराज ने कहा कि फिलहाल गरीबी दर 72 प्रतिशत है। उन्होंने 2001 में अफगानिस्तान की सत्ता से तालिबान के बेदखल होने के बाद हुए विकास के विभिन्न पहलुओं को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि बीते 20 साल में प्रतिव्यक्ति आय दोगुने से अधिक हो गई। जन्म के समय से जीवन प्रत्याशा नौ साल बढ़ी है।
बच्चों के स्कूल जाने के वर्षों की संख्या छह से बढ़कर 10 वर्ष हो गई है और महिलाओं के विश्वविद्यालय जाना बढ़ा है। विंगराज ने कहा, लेकिन अब अफगानिस्तान राजनीतिक अस्थिरता, विदेशी कोष पर रोक, सार्वजनिक वित्तीय प्रणाली के चरमराने, और स्थानीय बैंकिंग व्यवस्था पर पड़े प्रभाव के कारण मानवीय व विकास त्रासदी का सामना कर रहा है।

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