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आखिर क्या राज है? जो परमाणु हमले से भी नहीं डरता चीन का डैनडोंग शहर

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उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण में उसके मित्र देश चीन की भूमिका जानने के लिए दोनों देशों की सीमा पर बसा डैनडोंग शहर सबसे मुफीद है। दुनिया के बड़े देशों को हैरान-परेशान कर देने वाले उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण का असर डैनडोंग पर नहीं दिखता। आठ लाख लोगों की आबादी वाले इस शहर में पर्यटक यालु नदी के तट पर सैर करते दिख जाते हैं। सड़क किनारे मछली तलने वाले और बन भूनने वाले दुकानदार देर शाम तक अपने काम में व्यस्त है।

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बेफिक्र लोग
जब एक दुकानदार से उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण के बारे में पूछा गया तो उसने हैरानी जताते हुए कहा ‘कैसा टेस्ट?’
नदी किनारे बने पार्क में चीन के पारंपरिक गीत-संगीत का आनंद ले रहे बुजुर्गों के समूह ने इस परमाणु परीक्षण पर थोड़ी चिंता जरूर ज़ाहिर की। गोल फ्रेम वाले चश्मे और यूएसए प्रिंट वाली टी-शर्ट पहने एक बुजुर्ग महिला ने कहा, ‘मै थोड़ी चिंतित तो हूं लेकिन चीन और उत्तर कोरिया हमेशा से अच्छे दोस्त रहे हैं, इसलिए इन दोनों देशों के बीच कभी युद्ध नहीं होगा।’

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अपने दक्षिणी हिस्से से बिलकुल उलट उत्तर कोरिया की उत्तरी सीमा में पड़ने वाले इस शहर में एक अलग ही शांति महसूस की जा सकती है।
उत्तर कोरिया के किसी भी परमाणु परीक्षण पर चीन वैसी प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करता जैसे दक्षिण कोरिया या दुनिया के बाकी देश करते हैं।
उत्तर कोरिया ने सबसे पहले साल 1998 में जापान के ऊपर से रॉकेट छोड़ा था। साल 2006 में उत्तर कोरिया ने अपना पहला अंडरग्राउंड परमाणु परीक्षण किया।

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उत्तर कोरिया अपने परमाणु परीक्षण की रफ्तार लगातार तेज़ कर रहा है लेकिन चीन के लिए यह कोई आम सी बात है। डैनडोंग जाने पर जो एक बात अजीब लगती है वह है उसकी उत्तर कोरिया से निकटता. दक्षिण में डीएमज़ेड की तरह यहां की सीमाएं बंद नहीं हैं। डैनडोंग में यालु नदी से तैरकर कुछ ही मिनट में उत्तर कोरिया की तरफ पहुंचा जा सकता है।

आर्थिक जरूरत
चीन ने हाल के कुछ वर्षों में अपनी सीमाओं को अधिक सुरक्षित करने के लिए 1400 किमी सीमा पर कंटीले तार लगाए हैं. लेकिन कुछ हिस्सों में ऐसा नहीं किया गया है। सर्दियों में नदियों के जम जाने पर लोग आसानी से सीमा पार कर लेते हैं। चीन उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था को लगातार बढ़ाने और वहां चल रही अधिनायकवादी सत्ता को बरकरार रखने के पीछे रणनीतिक लाभ देखता है। वाशिंगटन के अनुसार प्योंगयांग बीजिंग का ऐतिहासिक सहयोगी है। ये दोनों ही देश विश्व भर के विरोध को जिस तरह आपस में बांट रहे हैं उसके चलते ये आधुनिक वक्त में किसी कांटे के समान हो गए हैं।

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हालांकि ऐसा महसूस होता है कि चीन डैनडोंग के साथ अपना व्यापार बनाए रखना चाहता है, क्योंकि उत्तर कोरिया के शासन पर अगर किसी प्रकार का संकट पैदा होता है तो उत्तर-पूर्वी चीन को इसके दुष्परिणाम सहने पड़ सकते हैं, साथ ही साथ असुरक्षित परमाणु हथियारों से लैस एक असफल राष्ट्र चीन की सीमा सुरक्षा के लिए यह खतरा बन सकता है। डैंनडोंग के बाहरी हिस्सों में तेल का बड़ा भंडार है। इसे चीन पर उत्तर कोरिया की निर्भरता के रूप में देखा जा सकता है।

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अमेरिका लगातार चीन पर इस बात के लिए दबाव बनाता रहता है कि चीन को उत्तर कोरिया द्वारा किए जाने वाले परमाणु परीक्षणों को कम करने के लिए तेल की सप्लाई बंद करनी चाहिए।

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चीन भी इस बात पर विचार कर रहा है कि परमाणु हथियारों से लैस पड़ोसी राष्ट्र उसके लिए कितना फायदेमंद साबित हो सकता है। साथ ही वह उत्तर कोरिया की असुरक्षा के लिए अमेरिका को ही जिम्मेदार मानता है। फिलहाल चीन और उत्तर कोरिया के बीच तेल की सप्लाई जारी है। डैनडोंग के पार्क में बैठे एक बु्जुर्ग कहते हैं ‘उत्तर कोरिया की हालत के लिए अमेरिका ही जिम्मेदार है। हम सभी कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त देखना चाहते हैं लेकिन अमेरिका के रवैए की वजह से यह संभव नहीं है।’

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