काठमांडू : नेपाल में गृह युद्ध की समाप्ति के एक दशक के बाद और करीब 20 वर्षों के अंतराल पर रविवार को स्थानीय निकायों के चुनाव होंगें। सरकार को उम्मीद है कि दो चरणों में होने वाला स्थानीय चुनाव इसी वर्ष होने वाले आम चुनाव का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। इस हिमालयी देश की माओवादी सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख के बीच हालिया विवाद के कारण इन चुनावों पर सवालिया निशान लग गया था लेकिन अब इन चुनावों का मार्ग प्रशस्त हो गया है और रविवार को इसके लिए वोट डाले जायेगे।
करीब एक दशक चले माओवादी उग्रवाद, जो वर्ष 2006 में समाप्त हुआ और दो साल बाद राजशाही के उन्मूलन जैसी गतिविधियों के कारण नेपाल पिछले कई वर्षों से राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा है। इसकी लोकतांत्रिक यात्रा को 2015 में तब एक झटका लगा जब कुछ क्षेत्रीय दलों ने बड़े राजनीतिक दलों द्वारा अनुमोदित संविधान को खारिज कर दिया था।
विश्लेषकों का कहना है कि स्थानीय स्तर पर निर्वाचित सरकारी निकायों की गैर मौजूदगी से विकास कार्यों में विलंब हुआ, भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला और 2015 में आए दो भूकंपों से तबाह हुए क्षेत्रों के पुनर्निर्माण का काम प्रभावित हुआ। भूकंप से लगभग 9,000 लोगों की मौत हो गई थी और तीन लाख लोग विस्थापित हुए थे।
देश की सबसे बड़ी त्रासदी के विस्थापित लोग अभी भी तिरपाल शीट और बांस से बने अस्थायी आश्रयों में रह रहे हैं। पुनर्निर्माण के लिए मदद के रूप में मिले 4.1 अरब अमेरिकी डॉलर को खर्च करने में विफल रहने के लिए सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। काठमांडू के एक उपनगरीय इलाके के निवासी 40 वर्षीय बिक्रम प्रजापति ने कहा, ”राजनेता हमारे पास वोट मांगने के लिए आ रहे हैं लेकिन हम केवल उन्हें वोट देंगे जो हमें एक स्थायी घर देगा।”
स्थानीय चुनावों के लिए अंतिम चरण का मतदान 14 जून को होना है। अंतिम चरण में दक्षिणी मैदानी इलाकों में चुनाव होने हैं जहां के जातीय अल्पसंख्यक समूह और अधिक प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे हैं। इन चुनावों में एक करोड़ 40 लाख मतदाता वोट देंगें।
(वार्ता)