नई दिल्ली : अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में बेहद सुरक्षित समझे जाने वाले इलाकों में महज एक हफ्ते में दो बेहद खतरनाक आतंकी हमला कहीं पाकिस्तान की बढ़ती खिसियाहट का नतीजा तो नहीं है? यह खिसियाहट इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि अफगानिस्तान, अमेरिका और भारत की जल्द ही वहां की भावी रणनीति पर एक अहम बैठक होने वाली है। इस बैठक की रजामंदी अक्टूबर, 2017 में अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन और सुषमा स्वराज के बीच हुई बातचीत में बनी थी। इस बैठक के बाद अफगानिस्तान मामले में पाकिस्तान के और ज्यादा हाशिए पर जाने के आसार है। बहरहाल, अफगानिस्तान के ताजे हालात पर भारत लगातार घनी प्रशासन के साथ ही अमेरिका के संपर्क में है।
शनिवार को काबुल के एक इलाके में एंबुलेंस के जरिए किये गये आत्मघाती हमले में तकरीबन सौ लोगों की मौत हो चुकी है। इसके कुछ ही दिन पहले वहां के एक बड़े होटल में आतंकवादी हमले में तीस देशी-विदेशी लोगों की मौत हुई थी। इन दोनों हमलों में पाकिस्तान समर्थित हक्कानी नेटवर्क के तालिबान समूह पर शक है। हमले की गंभीरता को देखते हुए भारत और अमेरिका दोनों ने भी बेहद सख्त प्रतिक्रिया जताई है। भारत ने इसकी कड़ी निंदा करते हुए अफगानिस्तान को हर तरह की मदद और घायलों को भी मदद देने की बात कही है।
देश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि भारत को इस बात का शक है कि अफगानिस्तान समस्या के समाधान के लिए जिस तरह से भारत की भूमिका बढ़ गई है और अमेरिका भारत को और बढ़ चढ़ कर काबुल में सहयोग करने के लिए आमंत्रित कर रहा है उसे इस्लामाबाद पचा नहीं पा रहा है। पाकिस्तान के हुक्मरान जानते हैं कि अफगानिस्तान की समस्या को लेकर वहां की सरकार, भारत और अमेरिका के बीच होने वाली प्रस्तावित विमर्श के बाद वे और हाशिये पर चले जाएंगे। ऐसे में उन्होंने अपने पाले हुए आतंकी संगठनों को हमला करने की खुली छूट दे दी है।
सनद रहे कि अक्टूबर, 2017 में जब से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की नई अफगान नीति की घोषणा की है तभी से पाकिस्तान की बेचैनी बढ़ी हुई है। इस घोषणा के कुछ ही दिनों बाद नई दिल्ली में टिलरसन और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बीच बैठक में यह तय हुआ था कि अफगान समस्या के स्थाई समाधान के लिए भारत, अमेरिका व अफगानिस्तान की त्रिपक्षीय बैठक जल्द आयोजित की जाएगी। इस बैठक की तिथि तय की जा रही है। द्विपक्षीय स्तर पर भी भारत व अफगानिस्तान के बीच रिश्ते लगातार मजबूत होते जा रहे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति अशरफ घनी के बीच एक दर्जन से ज्यादा बार मुलाकातें हो चुकी है। भारत अभी तक अफगानिस्तान को तकरीबन तीन अरब डॉलर की मदद दे चुका है।
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