दुनिया भर में संघर्ष के समाधान में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण साबित हो जाने के बावजूद उन्हें शांति वार्ता से बाहर रखे जाने की संयुक्त राष्ट्र ने निंदा की है। संयुक्त राष्ट्र महिला की कार्यकारी निदेशक फुमजिल म्लाम्बो-नगकुका ने गुरुवार को कहा, ‘महिलाओं को शांति प्रक्रिया से महज इसलिए बाहर नहीं रखा जा सकता, क्योंकि वे युद्ध में शामिल नहीं होती हैं।’ समाचार एजेंसी एफे के मुताबिक, म्लाम्बो ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में महिलाओं तथा शांति व सुरक्षा पर एक रपट पेश की, जहां इस मामले पर चर्चा हुई।
निदेशक ने कहा कि रपट एक सार्थक तरीके से महिलाओं को शांति प्रकिया में शामिल करने को लेकर प्रणालीगत असफलताओं पर ‘चेतावनी की घंटी’ है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, बड़े शांति वार्ताओं में 1990 से 2017 के बीच मध्यस्थों के रूप में महिलाओं की भागीदारी महज दो प्रतिशत, वार्ताकारों के रूप में आठ प्रतिशत और गवाहों व हस्ताक्षरकर्ताओं के तौर पर पांच प्रतिशत रही है। उन्होंने कहा कि 2017 में हस्ताक्षरित 11 समझौतों में से केवल तीन समझौतों में लैंगिक समानता के प्रावधान शामिल हैं।
उन्होंने यमन में मौजूदा वार्ता में महिलाओं की अनुपस्थिति के साथ-साथ माली, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और अफगानिस्तान में उनकी सीमित उपस्थिति पर चिंता जाहिर की। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस बीच विभिन्न अध्ययनों पर प्रकाश डाला, जो महिलाओं की भागीदारी और शांति के बीच संबंध दर्शाते हैं और उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से पूर्ण लैंगिक समानता हासिल करने के प्रयासों को जारी रखने का आग्रह किया।