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बैंकों के लिए कर्ज एवं जमा की ब्याज दरों को रेपो दर से जोड़ने का सही समय: शक्तिकांत दास

आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने सोमवार को पूरी बैंकिंग व्यवस्था में कर्ज एवं जमा पर दी जाने वाली ब्याज दरों को केन्द्रीय बैंक की रेपो दर में होने वाले उतार चढ़ाव के साथ जोड़ने की जरूरत पर जोर दिया है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने सोमवार को पूरी बैंकिंग व्यवस्था में कर्ज एवं जमा पर दी जाने वाली ब्याज दरों को केन्द्रीय बैंक की रेपो दर में होने वाले उतार चढ़ाव के साथ जोड़ने की जरूरत पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि इससे मौद्रिक नीति का फायदा ग्राहकों तक पहुंचने में तेजी आयेगी। 
भारतीय स्टेट बैंक समेत कई सार्वजनिक बैंकों ने हाल ही में अपनी कर्ज और जमा दर के मूल्यांकन को रेपो दर से जोड़ा है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इसी महीने मौद्रिक नीति बैठक में रेपो दर में 0.35 प्रतिशत की कटौती करने के बाद बैंकों ने यह कदम उठाया। रिजर्व बैंक की ओर से रेपो दर में ताजा कटौती के बाद रेपो दर 5.4 प्रतिशत रह गई। 
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बैंकों ने यह कदम ऐसे समय उठाया है जब नियामक ने उनकी खराब वित्तीय सेहत को देखते हुए इसके लिए दबाव नहीं डालने का फैसला किया है। आरबीआई गवर्नर दास ने उद्योग मंडल फिक्की की ओर से आयोजित सालाना बैंकिंग सम्मेलन में कहा कि दरों को बाहरी मानकों से जोड़ने की प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है और मुझे उम्मीद है यह काम तेज गति से होना चाहिए। 
दास ने कहा, “मुझे लगता है कि अब नए ऋण को रेपो दर जैसे बाहरी मानकों से जोड़ने को औपचारिक रूप देने का सही समय आ गया है। हम इस पर निगरानी कर रहे हैं और जरूरी कदम उठाएंगे।” उन्होंने कहा, “हम नियामक के रूप में अपनी भूमिका निभाएंगे। बाजार के रुख को देखेंगे और ऐसे कदम उठाएंगे जो कि नए कर्ज को रेपो या अन्य बाहरी मानकों से जोड़ने में मदद करेंगे।”
गवर्नर ने स्पष्ट किया है कि बैंकों ने अपनी ब्याज दरों खासकर नए कर्ज को रेपो और अन्य बाहरी मानकों से जोड़ना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा, “हालांकि, इस प्रक्रिया में तेजी की जरूरत है। आज अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए सिर्फ मौद्रिक नीति की ही नहीं बल्कि उसका लाभ नीचे तक पहुंचाने की भी जरूरत है।”
दास ने इस प्रक्रिया में तेजी आने की उम्मीद जताई है। आर्थिक वृद्धि में गिरावट पर चिंता जताते हुए दास ने कहा कि कयामत और निराशा किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं हैं। वृद्धि को बढ़ावा देना हम सभी की सर्वोच्च प्राथमिकता है और हर नीति निर्माता के लिए यह चिंता का विषय है। 
उन्होंने माना कि एनबीएफसी संकट, कुछ अहम क्षेत्रों में पूंजी उपलब्धता और मौद्रिक नीति का फायदा ग्राहकों को पहुंचाने और बैंकिंग सुधार से कारोबारी समुदाय के साथ अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ता रहा है। दास ने कहा कि वैश्विक बैंकिंग प्रणाली जोखिम को सहने के लिए लचीली हो रही है। वित्तीय स्थिरता पर नजर रखना जरूरी है क्योंकि यह अकेले दीर्घकालिक वृद्धि सुनिश्चित कर सकती है। 
आरबीआई गवर्नर ने उम्मीद से कम वृद्धि और आर्थिक सुस्ती के संकेतों को वैश्विक वित्तीय स्थिरता के लिए सबसे बड़ा जोखिम बताया है। उन्होंने कहा कि वित्तीय स्थिरता की दिक्कतों को भुगतान, कर्ज और बाहरी बाजारों से खत्म किया जा सकता है।
दास ने एनपीए की समस्या से जूझ रहे सार्वजनिक बैंकों में कामकाज संचालन में सुधारों का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि बैंकों की असली परीक्षा बाजार से पूंजी प्राप्त करने की उसकी क्षमता है। बैंक को पूंजी के लिए सिर्फ सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। उन्होंने दिवाला कानून में किए गए संशोधनों का स्वागत किया है। 

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