यह राष्ट्र भोग रहा है और भोगता रहेगा। ऐसा क्यों हो रहा है? इसका स्पष्ट उत्तर है, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि समाज बेईमानों का सम्मान करता है और ईमानदार यहां हमेशा दु:खी होता है। भ्रष्टाचार से आर्थिक वृद्धि और विकास को गंभीर खतरा पैदा होता है। यद्यपि भ्रष्टाचार सीमित संख्या में लोगों को अमीर बनाता है परन्तु यह समाज, अर्थव्यवस्था और राज्य नाम की संस्था के ताने-बाने को कमजोर करता है। बिहार में महिलाओं से पापड़-वड़ी बनवाकर बाजार में व्यापार करने वाली संस्था सृजन ने भ्रष्टाचार का विध्वंसक खेल खेला जिसकी जद में बड़े-बड़े लोग भी आ चुके हैं। किसने कितना कमाया, किसने भ्रष्टाचार की कमाई से शापिंग मॉल में हिस्सेदारी डाली, सब कुछ धीरे-धीरे सामने आ रहा है। वैसे तो बिहार का भागलपुर इलाका पहले से ही कई कारणों से काफी चर्चित रहा है लेकिन अब यह इस खबर के कारण चर्चा में है क्योंकि भागलपुर में बटेश्वर गंगा पम्प नहर परियोजना कहलगांव लगभग 38 वर्ष बाद पूरी होकर भी जमींदोज हो गई।
परियोजना पूरी करने के लिए 80 बैठकें और 389 करोड़ का खर्चा हुआ लेकिन इससे पहले कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उद्घाटन करते, उससे एक दिन पूर्व ही बांध ध्वस्त हो गया। मुख्यमंत्री क्या करते, उन्हें अपना दौरा रद्द करना पड़ा। इससे शिथिल निगरानी, निर्माण सामग्री की गुणवत्ता और पूर्व से लेकर वर्तमान तक के इंजीनियरों की कार्यशैली को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए हैं। बांध की मजबूती का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि बांध अपने उद्घाटन तक भी पानी का दबाव सहन नहीं कर सका और टूट गया। बांध का हिस्सा टूट जाने की वजह से आसपास के इलाकों में बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं। लोग इस बांध का 40 वर्षों से इंतजार कर रहे थे। जब दो दिन पहले नहर में पानी छोड़ा गया था ताकि बांध का परीक्षण किया जा सके तब भी बांध में लीकेज को देखने को मिली थी। इस परियोजना पर काम कर रहे अभियंताओं ने बांध की लीकेज की समस्या को ठीक करने की कोशिश की लेकिन ऐसा लगता है कि विफलताओं को छुपाने के लिए लीकेज रोकने के लिए उसी तरह ‘एम सील’ लगा दी गई जिस तरह लोग बाथरूम के नल की लीकेज रोकने के लिए लगा देते हैं। परियोजना से जुड़े लोगों ने ऐसा करके न केवल घोर लापरवाही का परिचय दिया बल्कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आंखों में धूल झोंकने का भी प्रयास किया। इसके लिए उन्हें दंडित किया ही जाना चाहिए।
यह बांध मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी परियोजना थी। इससे बिहार और झारखंड के किसानों को सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था हो जाती लेकिन करोड़ों रुपए पानी में बह गए। बिहार के जल संसाधन मंत्री ललन सिंह अब भी लीपापोती कर रहे हैं कि अत्यधिक पानी छोडऩे से बांध टूटा लेकिन नई परियोजना को ज्यादा नुक्सान नहीं पहुंचा है। यह वही ललन सिंह हैं जिन्होंने बिहार में आई प्रलयंकारी बाढ़ की वजह चूहों को बताया था। उनका कहना था कि चूहों की वजह से बाढ़ आई। इस बयान के बाद उनकी जमकर आलोचना हुई थी। बाढ़ के दिनों में भी जल संसाधन मंत्रालय की घोर लापरवाही सामने आई थी। अहम सवाल यह है कि आखिर बांध बहा क्यों? इस परियोजना में घपले के संकेत मिल रहे हैं। ट्रायल के दौरान लीकेज पर लीपापोती न कर अगर सत्यता की गंभीरता से जांच होती तो सब कुछ सामने आ जाता।
क्या बांध बालू से बनाया गया था? क्या उसमें पर्याप्त लोहा, सीमेंट लगाया गया था? क्या परियोजना के डिजाइन में त्रुटियां थीं? इन बातों की जांच तो चलती रहेगी लेकिन इतना निश्चित है कि बांध ध्वस्त होने का कारण भ्रष्टाचार है। जो बांध भ्रष्टाचार के खम्भों पर खड़ा हो उसकी नियति यही होनी ही थी। कुछ दिन पहले बाढ़ के दौरान लापरवाही बरतने के आरोप में जल संसाधन विभाग ने 19 अभियंताओं को निलम्बित कर दिया था। लोगों का कहना था कि इस वर्ष बाढ़ आई नहीं बल्कि लाई गई है। अभियंताओं की लापरवाही के कारण कई तटबंधों में जल के रिसाव के कारण तटबंध टूट जाने से बाढ़ का पानी बड़ी आबादी तक पहुंच गया। जब तक मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस नीति नहीं अपनाएंगे तब तक बांध बहते रहेंगे। बाढ़ लोगों के लिए बड़ी मुसीबत होती है लेकिन बाढ़ राहत कोष से सियासतदानों और अफसरों के चेहरे पर लाली आ जाती है। बांध परियोजना से जुड़े लोगों की सम्पत्ति और उनके धन के स्रोतों की जांच की जानी चाहिए। आम आदमी जानता है कि भ्रष्टाचार के मामलों में बड़े लोग बच निकलते हैं। वह यह भी जानते हैं-
उसी का शहर, वही मुद्दई, वही मुन्सिफ
मुझे यकीं है, हमारा कसूर निकलेगा,
यकीं न आए तो इक बार पूछ कर देखो
जो हंस रहा है, वह जख्मों से चूर निकलेगा।