लोकतंत्र का रक्त चरित्र - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

लोकतंत्र का रक्त चरित्र

NULL

पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनावों में हिंसा का जो तांडव हुआ उससे पूरे देश को हैरानी हुई। हिंसक वारदातों में 14 लोग मारे गए, अनेक घायल हुए। मरने वालों में तृणमूल, वामपंथी और भाजपा के समर्थक शामिल हैं। वामपंथी नेता और उसकी पत्नी को तो जिन्दा जला दिया गया। पश्चिम बंगाल में 58 हजार पंचायती क्षेत्र हैं जिनमें से 38 हजार पर ही चुनाव कराया गया यानी 20 हजार पंचायतों में तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी निर्विरोध जीत गए। इसका अर्थ यही है कि दूसरे राजनीतिक दलों ने चुनाव ही नहीं लड़ा। भाजपा और वामपंथी दल इसे संवैधानिक विफलता करार दे रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि ममता बनर्जी ने पंचायत चुनावों में खून का खेल खेला है। ऐसा नहीं है कि चुनावों में हिंसा कोई पहली बार हुई है। 1990 के पंचायती चुनावों में 400 जानें गई थीं। 2003 में वामपंथी शासन के दौरान 40 जानें गई थीं लेकिन जिस तरह सरकार ने गुंडागर्दी को संरक्षण दिया उसकी उम्मीद ममता बनर्जी से नहीं की जा सकती थी। विपक्ष में रहते हुए ममता बनर्जी वामपंथी शासन पर हिंसा करने के आरोप लगाते नहीं थकती थीं, अब वैसी ही हिंसा उनके शासन में भी हुई है।

चुनाव शांतिपूर्ण आैर निष्पक्ष बिना किसी भय या दबाव के होने चाहिएं लेकिन हुआ यह कि कानून-व्यवस्था विफल हो गई। पंचायत चुनाव कराने वाला सिस्टम पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। पहले तो तृणमूल ने ऐसा आतंक मचाया कि दूसरे दलों के उम्मीदवारों को नामांकन भरने ही नहीं दिया गया। उन्हें रास्ते में ही रोककर डराया-धमकाया गया। 34 फीसदी सीटों पर तृणमूल का विरोध करने की हिम्मत किसी भी दल ने नहीं दिखाई। क्या यह लोकतंत्र है? लोकतंत्र का रक्त चरित्र सामने आ चुका है। विरोधी दलों के उम्मीदवारों को नामांकन भरने से रोकने का मामला सुप्रीम कोर्ट और कोलकाता हाईकोर्ट के सामने भी आया था। दोनों ने पंचायती चुनावों पर असंतोष प्रकट किया था और चुनाव आयोग को फटकार भी लगाई थी। कुछ उम्मीदवारों ने अदालत से ई-मेल द्वारा नामांकन भरने की मांग स्वीकार करने का आग्रह किया था जिसे न्यायालय ने स्वीकार नहीं किया था। चुनावों की प्रक्रिया शुरू होते ही यह साफ दिखाई दे रहा था कि चुनाव निष्पक्ष नहीं होंगे।

पूरे बंगाल में तृणमूल कार्यकर्ताओं ने चुनाव से पहले हिंसा फैलाई और विरोधी उम्मीदवारों को आतंकित किया गया। मतदान के दौरान भी जमकर गुंडागर्दी हुई, बूथ लूटे गए, मतपत्र पानी में फैंके गए, मीडिया की गाड़ियों को तोड़ा गया। मतदान के दौरान हिंसा फैलाने की साजिश पहले से ही तैयार थी। इस बात का अन्दाजा प्रशासन को उसी वक्त लग जाना चाहिए था जब तृणमूल के बड़े नेता के घर से सैकड़ों बम बरामद किए गए थे। यह बरामदगी तब हुई जब उक्त नेता को हत्या के आरोप में गिरफ्तार करने के बाद उसके घर की तलाशी ली गई। हैरानी होती है तृणमूल नेता डेरेक आे ब्रायन का बयान पढ़कर जिन्होंने इस हिंसा को सामान्य बताया है और पुराने आंकड़े देकर तृणमूल की सरकार को क्लीनचिट देने की कोशिश की है। पंचायत चुनाव में बैलेट पर बुलेट को हावी होने दिया गया। हिंसा की भयावह तस्वीरें पूरे देश के सामने आ चुकी हैं लेकिन तृणमूल कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि चुनावों में हिंसा का इतिहास ही रहा है।

यह सही है कि वामपंथियों के शासन में हजारों लोगों की हत्याएं हुईं, उनके दामन पर भी खून के धब्बे हैं। यह देश लालगढ़ और सिंगूर में वामपंथी सरकार प्रायोजित हिंसा का चश्मदीद रहा है लेकिन ममता दीदी के आराध्य तो मां, माटी और मानुष रहे हैं। मां, माटी और मानुष की आवाज बनकर उभरीं ममता बनर्जी ने वामपंथियों के 34 वर्ष के शासन को उखाड़ दिया था, उसके बाद से ही वामपंथ इतिहास बनता चला गया।

ममता बनर्जी भी सत्ता में आकर निरंकुश होती चली गईं। पश्चिम बंगाल में साम्प्रदायिक हिंसा की अनेक घटनाएं सामने आईं लेकिन सत्ता ने वोट बैंक की खातिर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियां अपनाईं। पश्चिम बंगाल भी उन राज्यों में है जहां पुलिस का सबसे ज्यादा राजनीतिकरण हुआ है। जब भी पुलिस बल का राजनीतिकरण होता है तब सवाल यह है कि फिर सत्तारूढ़ गुंडागर्दी को रोकेगा कौन? पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी भी उसी तरह काम कर रही हैं जिस तरह वामपंथी करते रहे हैं यानी दूसरों को अपने इलाके में पांव नहीं रखने देना और इसके लिए चाहे किसी भी हद तक जाना पड़े। हिंसा की संस्कृति राजनीति की जड़ों में है। ऐसे में जनादेश कैसा होगा, सर्वविदित है। जब तक राजनीतिक दल बाहुबलियों और असामाजिक तत्वों को अपने से अलग नहीं करते तब तक लोगों का खून बहता ही रहेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

one × 1 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।