देश में अगर जांच एजेंसियां न हों तो राज्यों की पुलिस सच को झूठ और झूठ को सच बना सकती हैं। क्राइम को लेकर राज्यों में ऐसा होता रहा है। बलात्कार, मर्डर जैसे संगीन मामलों में पुलिस टीम कुछ भी कर सकती है। अक्सर कई केसों में सीबीआई जांच की मांग की जाती है और यह मांग पीडि़त पक्ष ही करता है लेकिन जब राज्य सरकारें सीबीआई जांच करवाती हैं तो असली गुनाहगार सामने आते हैं। पूरे देश को हिलाकर रख देने वाले गुरुग्राम स्थित रेयान इंटरनेशनल स्कूल में सात वर्षीय बालक प्रद्युम्न की नृशंस हत्या को लेकर हरियाणा में गुरुग्राम पुलिस ने हत्या के चौबीस घंटे बाद ही मामला हल कर डाला और स्कूल बस के कंडक्टर अशोक को दोषी ठहरा डाला। इतना ही नहीं हत्या का कारण मासूम बालक से सैक्स बता दिया, लेकिन राज्य सरकार ने जब सीबीआई जांच का आदेश दिया और अब अधिकारियों ने जो खुलासा किया वह भी पुलिस जांच की पोल खोल रहा है। सीबीआई ने लंबी-चौड़ी पड़ताल के बाद यह खुलासा किया है कि ग्यारहवीं के ही एक छात्र ने मासूम प्रद्युम्न की हत्या की है। आज की तारीख में गुरुग्राम पुलिस के पास कहने को कुछ नहीं है लेकिन कत्ल जैसे केस में पुलिस की घटिया-लचर कार्यशैली जरूर उजागर हो गई। अगर सीबीआई जांच न होती तो एक मासूम कंडक्टर दोषी ठहरा दिया जाता।
सवाल जांच का है, जांच के तौर-तरीकों का है, इस देश में मर्डर, रेप या सरकारी खजाने की लूट हो, अक्सर अपराधी बच निकलते हैं। नीतीश कटारा हत्याकांड में नीतीश की मां आखिर तक जबर्दस्त तरीके से राजनीतिक सिस्टम से लड़ी और सीबीआई ने कमाल का काम करते हुए दोषियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया। मीडिया ट्रायल की भी तारीफ की जानी चाहिए। जेसिका हत्याकांड में भी सीबीआई ने पूरी जांच-पड़ताल करते हुए अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया। अब अगर टू-जी स्पेक्ट्रम या फिर कॉमनवैल्थ घोटाले के अलावा आदर्श सोसाइटी की बात करें तो हम यही समझते हैं कि शुरूआती जांच ही सीबीआई के पास होनी चाहिए वरना अपराधी ऊंची राजनीतिक पहुंच के चलते घोटालों से साफ बचकर निकल जाते हैं। राजनीतिक सिस्टम तो जो है सो है, परंतु दु:ख इस बात का है मर्डर और रेप जैसे केसों में अक्सर सच्चे लोग कोर्टों में हार जाते हैं और गुनाहगार बाइज्जत बरी हो जाते हैं। प्रद्युम्न हत्याकांड के बारे में सीबीआई बहुत कुछ खंगालने का कार्य कर रही है और एक जुवेनाइल ने अपने पिता के सामने अपराध कबूला है। सीबीआई टीम और भी तह तक जा रही है। सच सामने आ रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जिस जुवेनाइल ने एक मासूम की हत्या की है, उस पर वयस्क की तरह केस चलना चाहिए और कड़ी सजा मिलनी चाहिए। सीबीआई को लेकर लोग राजनीतीकरण के आरोप लगाते रहते हैं, लेकिन यह भी तो सच है कि इस देश की सीबीआई ने ही बड़े-बड़े दबे हुए केस सही निर्णय तक पहुंचाए हैं।
महज चार-पांच महीने पहले विभिन्न राज्यों की पुलिस ने जिस प्रकार डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम बलात्कार कांड में अपनी भूमिका निभाई और जिस तरह से सीबीआई ने मामले की तह तक जाकर बलात्कार की शिकार लड़की को इन्साफ दिलाया है यह एक उदाहरण है, जो सीबीआई का नैतिक चरित्र काफी ऊंचा रखता है। दु:ख इस बात का है कि जब थानों में किसी भी अपराध के मामले में पुलिस वाले शिकायतकर्ता के साथ अपराधी की तरह पेश आते हों तो पुलिस पर विश्वास कौन करेगा? पुलिस का आचरण और चरित्र दोनों घेरे में हैं। हालांकि अनेक ईमानदार पुलिस अधिकारी और कर्मचारी भी अपने आचरण के लिए जाने जाते हैं। बिना भेदभाव के ड्यूटी करने वाले भी बहुत हैं, परंतु मर्डर और अन्य गंभीर अपराधों में गवाहों का खरीदा जाना और बिकना पुलिस के सौजन्य से ही होता रहा है। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं बल्कि हकीकत है। हमारा मानना यह भी है कि हर मामला सीबीआई को सौंपने की बजाए संबद्घ पुलिस ईमानदारी से अगर अपनी भूमिका निभाती है तो पेंडिंग केसों की लंबी परंपरा से भी मुक्ति मिल जाएगी। देश की अदालतों में करोड़ों केस तो यौन शोषण, मर्डर और डकैती के अलावा फ्राड से जुड़े हैं और पेंडिंग चल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई तक ने पूर्व में प्रधानमंत्री के समक्ष जजों की संख्या बढ़ाए जाने की गुहार लगाई थी तो उनका दर्द भी छलक आया था।
जांच-पड़ताल में सच तब उभरता है अगर ईमानदारी और कत्र्तव्यपरायणता से आगे बढ़ा जाए। दुर्भाग्य से पुलिस के साथ ऐसा नहीं है। लिहाजा अपराधी जहां बच निकल रहे हैं वहीं भविष्य में भी अपराध का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। प्रद्युम्न हत्याकांड में हरियाणा सरकार को सीबीआई अनुशंसा के लिए लंबा वक्त लग गया। क्या राजनीतिक दबाव के बिना पुलिस किसी भी निष्कर्ष पर पहुंच सकती है? जब सीबीआई टीवी फुटेज देखकर प्रद्युम्न के कत्ल में एक छात्र को टॉयलेट में घुसता हुआ देख सकती है तो गुरुग्राम पुलिस जांच टीम को यह क्यों नहीं दिखाई देता? परिस्थितिजन्य साक्ष्य सबके सामने हैं परंतु परिणाम को लेकर हरियाणा पुलिस और सीबीआई के निष्कर्षों में जमीन-आसमान का फर्क निकला। सीबीआई ने अपनी पूरी पड़ताल पर आधारित जांच कर प्रद्युम्न हत्याकांड में सही निष्कर्ष निकाला है। हालांकि इसका फैसला तो कोर्ट ही करेगा लेकिन उसका खुलासा पुलिस की कार्यशैली पर एक करारी चोट है। कितने ऐसे पुराने केस हो चुके होंगे जिनमें बेगुनाह लोग गुनाहगार घोषित कर दिए गए होंगे, इस बात का जवाब अब क्या पुलिस अधिकारी देंगे? सवाल व्यवस्था का है और इसका जवाब सीबीआई ने दिया है परंतु हरियाणा पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है।