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अंततः जुमा का पतन हो ही गया

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दक्षिण अफ्रीका वास्तव में अफ्रीका महाद्वीप का नम्बर एक देश है। नेल्सन मंडेला ने लम्बा संघर्ष कर रंगभेद समाप्त कर लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता सुपुर्द कर गोरों और अश्वेतों ने साझे सद्भाव से दक्षिण अफ्रीका को बढ़ाया, उसकी वैश्विक हैसियत बनाई। नेल्सन मंडेला तो समूचे अफ्रीकी महाद्वीप का बहुत बड़ा व्यक्तित्व हो गये। नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका को स्वतंत्रता दिलाई, उन्हें वहां का महात्मा गांधी यानी राष्ट्रपिता माना गया। साथ ही जैकब जुमा और मकेबी ने भी काफी लोकप्रियता हासिल की। इसमें कोई संदेह नहीं कि जैकब जुमा ने दक्षिण अफ्रीका को अपनी फितरत में ढाला। 9 वर्षों से राष्ट्रपति पद पर रहे जुमा का पतन इस तरह होगा, इसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी। उन्होंने अपनी धमक और दबदबे के चलते जो चाहा वह किया। अंततः उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और उपराष्ट्रपति सेरिल रामापोपा को नया राष्ट्रपति बना दिया गया। जैकब जुमा का अंत उन्हीं की करनियों से हुआ। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को क्रोनी कैपलिडम और भ्रष्टाचार में इस कदर फंसा दिया, उनके पतन की भूमिका कुछ समय पहले ही लिखी जा चुकी थी। एक राष्ट्राध्यक्ष अपनी ताकत के बल पर और निजी सनक के चलते कैसे एक के बाद एक मूर्खताएं करने लगते हैं और उनको एक न एक दिन अर्श से फर्श पर गिरना पड़ता है। ऐसी ही कहानी जुमा की भी है।

कुछ समय पहले जिम्बाव्बे में जिस तरह राबर्ट मुगाबे का शासन बर्बादी के साथ खत्म हुआ, ऐसा ही हश्र जुमा का हुआ। दक्षिण अफ्रीका में विपक्ष काफी प्रभावशाली है इसलिए वहां लोकतंत्र चल रहा है। जुमा शासन से पहले मवेकी का शासन था। लोग मवेकी के शासन को याद करते हैं क्योंकि उनके शासन में दक्षिण अफ्रीका तेजी से विकसित देशों की कतार में शामिल दिखाई दे रहा था। मवेकी को पार्टी से हटवाकर ही जुमा राष्ट्रपति बने थे। जुमा के कार्यकाल में एक के बाद एक स्कैंडल सामने आ गए। देश स्कैंडलों की खान बन गया और जुमा की छवि बिगड़ती चली गई। जनता का भरोसा उनसे उठता गया। 1999 के रक्षा सौदे में वित्तीय गड़बड़ी करने के आरोप लगे। उसके बाद से ही उनकी छवि दागदार बनती गई। कभी सोचा भी नहीं था कि 1990 के दशक में जब वह नेल्सन मंडेला के साथ काम कर रहे थे तो उनका जादू ​िसर चढ़कर बोलता था। जब सेना की बात कहने वाले जुमा को भ्रष्टाचार के कारण पद से हटना पड़ा।एक बात जो भारत के लिए परेशानी वाली है वह है जुमा के पतन से भारतीय गुप्ता परिवार का जुड़ा होना। गुप्ता बन्धु अनिवासी भारतीय हैं, पर उनके पास भारतीय पासपोर्ट है या ब्रिटिश, इसकी तो जानकारी नहीं है मगर दक्षिण अफ्रीका के आम लोगों की नजर में वे भारतीय ही हैं। 25 वर्ष पहले सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) के साधारण परिवार से निकले अजय, अतुल और राजेश गुप्ता ने दक्षिण अफ्रीका पहुंच कर पूरा साम्राज्य स्थापित कर लिया। जैकब जुमा से नजदीकियों के चलते गुप्ता परिवार करीब दो साल से विपक्ष के निशाने पर है।

दो वर्ष पहले अजय गुप्ता के बेटे की शादी दक्षिण अफ्रीका में करने की बजाय किसी अन्य देश में की थी। गुप्ता बन्धुओं ने दक्षिण अफ्रीका में व्यापार की शुरुआत सहारा कम्प्यूटर्स से की थी। बाद में इनका दखल खनन, वायुसेना, ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और मीडिया के क्षेत्र में भी हाे गया। स्थिति यह रही कि जुमा की पत्नी, बेटे आैर बेटी तक ने गुप्ता बन्धुओं की कम्पनी में किसी न किसी रूप में काम किया। जैकब जुमा की पत्नी बोगी नगेमा ने गुप्ता बन्धुओं की स्वामित्व वाली कम्पनी जेआईसी माइनिंग सर्विसेज में कम्युनिकेशन अधिकारी के रूप में काम किया। गुप्ता बन्धुओं पर आरोप भी लगे कि उन्होंने एक सांसद को मंत्री पद के लिए बढ़ावा देने की पेशकश की। गुप्ता बन्धुओं ने सत्तारूढ़ दल को भारी चंदा भी दिया। विवाद तब हुआ जब प्रीटोरिया में वाटरक्लूफ एयरफोर्स के हवाई अड्डे पर शादी में शामिल होने आए लोगों को लेकर आया विमान उतारा गया। यह हवाई अड्डा आमतौर पर दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों के विमानों के उतरने के लिए इस्तेमाल होता है। विपक्षी डेमोक्रेटिक एलायंस ने सत्तारूढ़ दल पर सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया। दक्षिण अफ्रीका की बिजली के क्षेत्र में एकाधिकार रखने वाली सरकारी कम्पनी ने गुप्ता से जुड़ी कम्पनियों से मार्केट प्राइस से ज्यादा पर बड़े पैमाने पर खरीदारी की रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई थी।
जुमा के इस्तीफा देने से पहले ही गुप्ता बन्धुओं के घर पर छापेमारी की गई। जैकब जुमा के कार्यकाल में हुए कथित घोटालों में इनकी भूमिका की जांच की जा रही है। हाल ही के वर्षों में वहां के बैंकों द्वारा गुप्ता बन्धुओं की कम्पनियों को दी जा रही सुविधाएं वापस ले लीं। गुप्ता जिस बैंक के बड़े क्लाइंट थे, उस बैंक ऑफ बड़ौदा ने भी दक्षिण अफ्रीका से कारोबार समेटने की घोषणा कर दी है। अहम सवाल यह है कि इस घटनाक्रम का भारत और दक्षिण अफ्रीका सम्बन्धों पर असर पड़ेगा। भारत और दक्षिण अफ्रीका सम्बन्ध काफी मजबूत हैं। कई मंचों पर दोनों देश एक-दूसरे को सहयोग कर रहे हैं। भारत की नीति कभी भी दक्षिण अफ्रीका की घरेलू राजनीति में दखल की नहीं रही। दोनों देशों का कारोबार भी बढ़ रहा है। यह दक्षिण अफ्रीका का विशुद्ध अन्दरूनी मामला है। केवल गुप्ता बन्धुओं के भारतीय होने से सम्बन्धों पर फर्क नहीं पड़ने वाला लेकिन चिन्ता यह है कि दक्षिण अफ्रीका के लोग यह न मानने लगे कि भारतीयों ने उनके देश को लूटा है।

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