चांदनी की सी रोशनी बिखेरने वाली, बड़ी-बड़ी आंखों वाली, करोड़ों दिलों पर राज करने वाली, लाखों प्रशंसकों की जिन्दगी में रूमानियत का हिस्सा बनी अभिनेत्री श्रीदेवी के अकस्मात निधन से फिल्म उद्योग को गहरा आघात लगा है। फिल्म उद्योग में प्रतिभा सम्पन्न अभिनेत्रियों की कमी नहीं लेकिन श्रीदेवी उन सबसे अलग थीं। वह उद्योग जगत का ऐसा फूल थीं जो अलभ्य, दुर्लभ है। वह ब्रह्म कमल थीं। ब्रह्म कमल भी ऐसा जिसमें चंचलता, शोखियां, गम्भीरता और संवेदनाएं सब कुछ था। उसका मुस्कराना गुलाल था तो शर्माना गुलाब था। 51 वर्ष पहले 4 वर्षीय एक छोटी बच्ची तमिल सिनेमा के रजत पट पर नजर आई थी, तब से लेकर आज तक अपनी बेहतरीन अदाकारी से श्रीदेवी ने फिल्मों में 50 वर्ष तक लम्बा सफर तय किया। इतना लम्बा फिल्मी करियर किसी दूसरी अभिनेत्री के हिस्से में नहीं आया।
जिन लोगों ने भी बालू महेन्द्रा निर्देशित फिल्म ‘सदमा’ देखी होगी, क्या वह उस श्रीदेवी को कभी भुला सकेंगे? सदमा की वह 20 साल की लड़की जो पुरानी जिन्दगी भूल चुकी है अाैर 7 साल की मासूमियत लिए एक छोटी बच्ची की तरह कमल हासन के साथ उसके घर रहने लगती है। रेलवे स्टेशन का वह सीन जहां यादाश्त वापस आने के बाद ट्रेन में बैठी श्रीदेवी कमल हासन को भिखारी समझ कर बेरुखी से आगे बढ़ जाती है आैर कमल हासन उसे पुराने दिनों को याद दिलाने की कोशिश करते हैं। यह उनकी हिन्दी फिल्मों के बेहतरीन दृश्यों में होगा। फिल्म चांदनी की चांदनी, चालबाज की मंजू और अंजू, लम्हे की पूजा, मिस्टर इंडिया की हवा-हवाई आैर नगीना में नागिन की भूमिका में श्रीदेवी ने ऐसा जादू बिखेरा कि उन्हें फिल्म की सफलता की गारंटी माना जाने लगा था। मिस्टर इंडिया की अभूतपूर्व सफलता के बाद यह सवाल उठने लगा था कि फिल्म तो श्रीदेवी के कारण हिट हुई है तो फिर फिल्म का नाम मिस्टर इंडिया की बजाय मिस इंडिया रख देना चाहिए।
उन्होंने अपने अभिनय से सबका मुंह बन्द करके रख दिया। उस जमाने में लोग उन्हें लेडी अमिताभ भी कहने लगे थे। वह एक ऐसी संपूर्ण अभिनेत्री रहीं जो कॉमेडी, एक्शन, डांस, ड्रामा हर विधा में माहिर थीं। कॉमेडी में तो उसकी टाइमिंग गजब की थी। उन्होंने शुरुआती दौर में जितेन्द्र के साथ हिट फिल्में दीं, बाद में जीवन के उतार-चढ़ाव देखने के बाद ऐसा मुकाम हासिल िकया, जब उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म करने से इन्कार कर दिया क्योंकि स्क्रिप्ट में उनकी भूमिका छोटी थी। पुरुष प्रधान फिल्म उद्योग मेें नायिकाओं का स्थापित होना बहुत बड़ी चुनौती होता है। वह भी उस दौर में जब अमिताभ बच्चन आैर अन्य प्रभावशाली व्यक्तित्व उद्योग में छाये हुए हों। माधुरी दीक्षित उनकी सफलता के रथ को रोकने का प्रयास कर रही थीं। अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म खुदा गवाह तभी साइन की थी जब उनकी भूमिका अमिताभ के बराबर रखी गई। तेलगू, तमिल , कन्नड़ और मलयालम फिल्मों में काम करने वाली श्रीदेवी के लिए हिन्दी फिल्म उद्योग में खुद को स्थापित करना कोई आसान नहीं था लेकिन उन्होंने समकालीन अभिनेित्रयों को तो चित्त किया ही बल्कि बड़े स्टारों को भी चुनौती दे डाली।
निर्देशक आैर कैमरामैन भी दुविधा में पड़ जाते थे कि उनका क्लोजअप दिखाएं या उनका डांस दिखाने के लिए लांग शॉट दें। उनके चेहरे के भाव, उनकी आंखें इतनी मोहक थीं कि हर निर्देशक चाहता था कि उनके क्लोजअप लिए जाएं लेकिन ऐसा करने से उनका डांस छूट जाता था जो गजब का होता था। निजी जीवन में उथल-पुथल के बाद उन्होंने बोनी कपूर से शादी करने के बाद फिल्म जुदाई के बाद ब्रेक ले लिया। श्रीदेवी ने फिल्म उद्योग में वापसी की इंग्लिश-विंग्लिश से। यह फिल्म एक ऐसी महिला की कहानी थी जिसे अंग्रेजी नहीं आती थी, जिसकी वजह से उसके परिवार वाले ही उसे महत्व नहीं देते थे। इस फिल्म को दर्शकों ने इतना पसन्द किया कि श्रीदेवी फिर हिट हो गईं। उन्होंने अनोखी स्क्रिप्ट आधारित फिल्मों को भी प्राथमिकता दी। अक्सर स्टारडम के बाद की जिन्दगी अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के लिए बड़ी मुश्किल भरी होती है। यह विडम्बना ही है कि फिल्मों में उम्रदराज अभिनेता और अभिनेत्रियों के लिए कोई जगह ही नहीं रखी जाती। अच्छे कथानक ही उपलब्ध नहीं हैं। श्रीदेवी ने अपनी उम्र के अनुरूप भूमिका चुनी।
उनकी अन्तिम फिल्म ‘मॉम’ ने तो दर्शकों पर जादू कर दिया। उन्होंने ऐसी मां की भूमिका निभाई जो बलात्कार की शिकार अपनी बेटी का बदला लेने के लिए दुर्गा का रूप धारण कर लेती है। श्रीदेवी को कमबैक गर्ल का खिताब दिया गया जबकि माधुरी दीक्षित ने भी कमबैक की कोशिश की लेकिन उनके हाथ विफलता ही लगी। रियल लाइफ में ग्लेमर्स दिखने वाली श्रीदेवी ने फिल्म में मां की भूमिका में कमाल कर दिया। इतनी सफलता तो रेखा और हेमा के हिस्से में भी नहीं आई। दरअसल संपूर्ण सौंदर्य जन्म नहीं लेता बल्कि प्रतिभा के साथ अवतरित होता है, घटित होता है। सौंदर्य आैर प्रतिभा का अद्भुत संगम थीं श्रीदेवी। उसके निधन से ऐसी महानायिका के युग का अवसान हो गया, जिसकी कमी शायद ही कभी पूरी हो।