जो लोग ऊंचे पदों पर कल तक बैठे थे और सत्ता में नहीं हैं और जब ऐसे लोग अपनी पोजीशन का दुरुपयोग करते हुए लाखों-करोड़ों-अरबों का हेरफेर करते हैं तो उन पर शिकंजा कसा ही जाना चाहिए। हमारे देश में भ्रष्टाचार को लेकर जिस तरह से आरोप बड़े पदों पर बैठे लोगों पर लगे हैं तो जब उनके खिलाफ कार्यवाही की प्रक्रिया शुरू होती है तो वे चीखने-चिल्लाने लगते हैं। पिछले दिनों पूर्व वित्त एवं गृहमंत्री रहे पी.सी. चिदम्बरम और उनके बेटे उद्योगपति कार्ति चिदम्बरम के अलावा राजद सुप्रीमो लालू यादव के यहां सीबीआई के छापे पड़े तो उनकी चीखो-चिल्लाहट समझ आती है। ईडी और आयकर विभाग ने अब इनके खिलाफ शिकंजा कस लिया है।
पी.सी. चिदम्बरम और उनके बेटे कार्ति को लेकर हैरानगी इस बात की है कि जब उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में एक्शन लिए जाने की बात हो रही थी तो खुद चिदम्बरम साहब कह रहे थे कि आपको कार्यवाही से किसने रोका है और अब जब इनकी बेनामी संपत्ति और आय से अधिक धन का पता चल रहा है तो ये लोग चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे हैं कि हमारे खिलाफ राजनीतिक बदले के तहत यह कार्यवाही की जा रही है। हमारा सवाल यह है कि पुत्र कार्ति चिदम्बरम और पिता पी.सी. चिदम्बरम को किसने यह इजाजत दे दी कि वे कानून को ताक पर रखकर जहां चाहें निवेश करें और जहां चाहें पैसा ट्रांसफर करें। आखिरकार इन नेताओं को मनमानी की छूट क्यों मिली हुई थी? इन्हीं चीजों का पता लगाने के लिए अगर सीबीआई या इनकम टैक्स विभाग या ईडी आगे बढ़ रहे हैं तो फिर अब ये राजनीतिक विद्वेष के आरोप क्यों लगा रहे हैं।
अब तो ईडी ने कार्ति चिदम्बरम के खिलाफ मामला भी मनी लांड्रिंग को लेकर दर्ज कर लिया है। लिहाजा उनसे पूछताछ का मार्ग प्रशस्त हो गया है और चिदम्बरम भी शिकंजे में ही हैं। यह बात अलग है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद के चीफ लालू यादव के ठिकानों पर भी इनकम टैक्स विभाग ने दिल्ली से लेकर पटना तक छापेमारी की है। विभाग को लगता है कि उनके पास एक हजार करोड़ से भी ज्यादा की बेनामी संपत्ति है। आज लालू भले ही केंद्र सरकार पर राजनीतिक बदला लेने का आरोप लगा सकते हैं लेकिन लालू को यह भी याद रखना होगा कि जब कांग्रेस के शासन में उनके खिलाफ सीबीआई के छापे पड़े थे और बाद में यह कार्यवाही रुक गई तो तब अपने इस मैनेजमेंट कौशल को लेकर वह चुप क्यों रहे। चारा घोटाले में लालू आकंठ लिपटे हुए हैं। लिहाजा कुछ कहने से पहले लालू को अपने गिरेबान में जरूर झांक लेना चाहिए।
चिदम्बरम और उनके बेटे के खिलाफ सीबीआई ने विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड द्वारा उनकी कंपनी 9एक्स मीडिया को मंजूरी मिलने को लेकर छापेमारी दिल्ली से चेन्नई तक की गई। मनी ट्रांसफर के केस भी सामने आ रहे हैं तभी तो ईडी ने उनके खिलाफ मनी लांड्रिंग का मामला दर्ज किया है।
हमारा यह कहना है कि सरकार अपना हर काम सही ढंग से कर रही है। यह बात अलग है कि सीबीआई समेत ये तमाम एजेंसियां उसके अधीन हैं तथा ये बड़े लोग रुपए को इधर-उधर करने के गोरखधंधे में बेनकाब हो चुके हैं। दरअसल यूपीए-1 व यूपीए-2 शासन के दौरान इतने घोटाले हुए हैं कि देश की सूरत और सीरत दोनों पर दुनिया शक करने लगी थी। सबसे बड़ी बात है कि देशवासियों का ही ऐसी सरकारों से विश्वास उठ गया था जो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई थीं। ऐसी छवि बनाने में चिदम्बरम और कार्ति जैसे अनेक नेताओं के ‘महान योगदान’ को कैसे भुलाया जा सकता है? विदेशों में बेनामी संपत्तियां बनाने के खेल में और देश का रुपया विदेश ले जाने में ऐसे लोगों का हाथ रहा है। अभी और भी बहुत सी मछलियां फंसेंगी। ये लोग कल तक जब खुद ही सरकार थे तो फिर इन्हें कौन पकड़ता? ‘सैंया भये कोतवाल तो अब डर काहे का’ की उक्ति के तहत ये लोग काम करते रहे। चिदम्बरम और उनके पुत्र के अलावा लालू यादव के पास अकूत संपत्ति कहां से और कैसे आई? क्या इन लोगों ने इस मामले में नियमों का पालन किया?
मोदी सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका आपरेशन क्लीन नोटबंदी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि भ्रष्टाचारी बख्शे नहीं जाएंगे। यह छापेमारी इसी कार्यवाही का हिस्सा है। सबसे बड़ी बात यह है कि लोगों का सरकार और उसकी वर्किंग पर भरोसा न सिर्फ बना है बल्कि बढ़ता ही जा रहा है, इसीलिए अब विपक्ष खासतौर पर छापेमारी की जद में आए ये लोग चिल्ला रहे हैं।
कौन भूल सकता है कि एम्बुलेंस घोटाले में क्या कुछ नहीं हुआ? या पी.सी. चिदम्बरम जैसे व्यक्ति ने गृहमंत्री और वित्तमंत्री रहते हुए कितने घपले किए। जब चाहे इशरतजहां कांड में फाइलें बदलवा कर अपनी सुविधा के मुताबिक केस को नई दिशा दी। यही वजह है कि कांग्रेस सरकार को भ्रष्टाचार के इन मामलों में चिदम्बरम और ए. राजा, कलमाडी तथा कई अन्य नेताओं के पाप का घड़ा भर जाने की कीमत चुकानी पड़ी। लोकतंत्र का हिसाब भी भगवान के घर की तरह है। जो जैसा करेगा वो वैसा ही भुगतेगा। अब समय आ गया है जब चिदम्बरम और उनके पुत्र सलाखों के पीछे होंगे।
हम नहीं सोशल साइट्स पर लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस सरकार में रहकर इन लोगों ने अपने पदों का दुरुपयोग करते हुए अपनी पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ भी गद्दारी की। दु:ख इस बात का है कि आज भी ये लोग बाज नहीं आ रहे हैं। सब जानते हैं कि तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी (आज राष्ट्रपति) कभी भी चिदम्बरम साहब को अच्छे नहीं लगे। जब चाहे उनके दफ्तर में चिप लगवाकर जासूसी की और जब चाहे उनके खिलाफ साजिशें रचकर विभाग बदलवाए, राजनीतिक दृष्टिकोण से इस मामले में लोग आज भी कांग्रेस को कोसते नहीं थकते और ऐसे नेताओं के कृत्य से पूरी कांग्रेस सरकार बदनाम हुई। आज देशवासी कह और समझ रहे हैं कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ एक्शन होना ही चाहिए, इसीलिए सरकारी एजेंसियों के एक्शन का स्वागत किया जा रहा है। अब देखने वाली बात यह है कि ये भ्रष्टाचारी लोग कब तक सलाखों के पीछे पहुंचेंगे या फिर लोकतंत्र में अपने काबिल वकीलों के दम पर जुगाड़ बैठाएंगे लेकिन बड़े लोगों को अगर भ्रष्टाचार के केस में सजा मिलती है तो एक बड़ी नजीर सबके सामने रखी जा सकती है।